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________________ -८. १५ अट्ठमो महाधियारो .. तीसं चिय लक्खाणि सीदिसहस्साणि छस्सयाणि च । पणदाल जायणाणि पंच कला अभईदए वासो॥ . ३०८०६४/६/ सत्तत्तरिजुदछसया णव य सहस्साणि तीसलक्खाणि । जोयण तह तेरसया कलाओ हारिहविक्खंभो ॥ । ३०.९६७७ |३१ एक्कोणतीसलक्खा अडतीससहस्ससगसयाणि च । णव जोयगाणि अंसा इगिवीसं पउमविस्थारो॥४२ ___ २९३८७०९ २० अट्ठावीसं लक्खा सत्तट्टीसहस्ससगसयाणिं पि। इगिदालजोयगाणिं कलाओ उणतीस लोहिदे वासो॥१ २८६७७४ | ३९ सत्तावीसं लक्खं छण्णउदिसहस्ससगसयाणि च । चउहत्तरिजोयणया छकलाओ वज्जविक्खंभो ॥ ४४ सगवीसलाखजोयण पणुवीससहस्स अडसयं छक्का । चौदस कलाओ कहिदा गंदावहस्स विक्खंभो॥ ४५ २७२५८०६ ३९ अभ्र इन्द्रकका विस्तार तीस लाख अस्सी हजार छह सौ पैंतालीस योजन और पांच कला अधिक है ॥ ४० ॥ ३०८०६४५३३ । हारिद्र नामक इन्द्रकका विस्तार तीस लाख नौ हजार छह सौ सतत्तर योजन और तेरह कला अधिक है ॥४१॥ ३००९६७७१३ । पद्म इन्द्रकका विस्तार उनतीस लाख अड़तीस हजार सात सौ नौ योजन और इक्कीस भाग अधिक है ॥ ४२ ॥ २९३८७०९३३ । लोहित इन्द्रकका विस्तार अट्ठाईस लाख सड़सठ हजार सात सौ इकतालीस योजन और.उनतीस कला अधिक है ॥ ४३ ॥ २८६७७५१३ । वज्र इन्द्रकका विस्तार सत्ताईस लाख छयानबै हजार सात सौ चौहत्तर योजन और छह कला अधिक है ॥ ४४ ॥ २७९६७७४६१ । नन्द्यावर्त इन्द्रकका विस्तार सत्ताईस लाख पच्चीस हजार आठ सौ छह योजन और चौदह कला अधिक कहा गया है ॥ ४५ ॥ २७२५८०६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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