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________________ ७७४ तिलोयपण्णत्ती पंचत्तीस लक्खा छसहस्सा चउसयाणि इगिवण्णा । जोयणया उणवीसा कलाभो रुजगस्स वित्थारो ॥ ३४ ३५०६४५१३ चउतीसं लक्खाणिं पणतीससहस्सचउसयाणि पि । तेसीदि जोयणाणि सगवीसकलाओ रुचिरविस्था । ३४३५४८३ /२७ तेत्तीसं लक्खाणि चउसद्विसहस्सपणसयाणि पि । सोलस य जोयणाणिं चत्तारि कलाओ अंकवित्थारो॥३६ ३३६४५१६, बत्तीसं चिय लक्खा तेणउदिसहस्सपणसयाणि पि । अडदालजोयणाणिं बारसभागा फलिहरुंदो ॥ ३७ ___३२९३५४८ ३२ बत्तीसलक्खजीयण बावीससहस्सपणपया सीदी। भंसा य वीसमेत्ता रुंदो तवणिज्जणामस्स ॥ ३८ ३२२२५८०२९ इगितीसलक्खजोयण इगिवणसहस्सछसयबारं च । अंसा अट्ठावीसं वित्थारो मेघणामस्स ॥ ३९ ३१५१६१२ २८ . . रुचक इन्द्रकका विस्तार पैंतीस लाख छह हजार चार सौ इक्यावन योजन और उन्नीस कला अधिक है ॥ ३४ ॥ ३५०६४५१३।। रुचिर इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख पैंतीस हजार चार सौ तेरासी योजन और सत्ताईस कला अधिक है ॥ ३५ ॥ ३४३५४८३३३ । अंक इन्द्रकका विस्तार तेतीस लाख चौंसठ हजार पांच सौ सोलह योजन और चार कला अधिक है ॥ ३६ ॥ ३३६४५१६३४ । स्फटिक इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख तेरान_ हजार पांच सौ अड़तालीस योजन और बारह भाग अधिक है ॥ ३७ ॥ ३२९३५४८३३ । तपनीय नामक इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख बाईस हजार पांच सौ अस्सी योजन और बीस भाग मात्र अधिक है ॥ ३८ ॥ ३२२२५८०३३।। मेघ नामक इन्द्रकका विस्तार इकतीस लाख इक्यावन हजार छह सौ बारह योजन और अढाईस भाग अधिक है ॥ ३९ ॥ ३१५१६१२३६ । १६ अट्ठावीसा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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