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________________ तिलोयपण्णत्ती [७.६०३सेसाओ वष्णणामो नंबूदीवस्स पणणसमाओ । णवार विसेसी संखा अण्णण्णा खोलताराण ॥ १०३ एक्कसयं उणदालं लवणसमुद्दम्मि खीलतारामी । दसउत्तरं सहस्सा दीवम्मि य धादईसंडे ॥ ६०४ १३९ । १०१०। एक्कत्तालसहस्सा वीसुत्तरमिगिसयं च कालोदे । तेवणलहस्सा बेसयाणि तीसं च पुक्खरद्धम्मि ॥६.५ . ११२० । ५६२२० । माणुसखेत्ते ससिणी छासट्ठी होति एकपासम्मि । दोपासेसुं दुगुणा तेत्तियमेत्ताभो मता ॥ ६०१ एकरससहस्साणि होति गहा सोलखुत्तरा छसया। रिक्खा तिणि सहस्सा छस्सयछण्णउदिअदिरित्ता। ११६१६ । ३६९६ । मटासीदीलक्खा चालीससहस्ससगसयाणि पि । होति हु.माणुसखेते ताराणं कोडफोडीओ ॥ ६०८ ८८४०७०००७००००००००००००। पंचाणउदिसहस्सं पंचसया पंचतीसमभहिया। खेत्तम्मि माणुसाणं चेटुंते खीलताराभो । ६०१ ९५५३५। सम्वे ससिणो सूरा णक्खत्ताणि गहा य ताराणि । णियणियपहपणिधीसुं पंतीए चरंति णभखंडे ॥ ६१० .... इनका शेष वर्णन जम्बूद्वीपके वर्णनके समान है । विशेषता केवल यह है कि स्थिर ताराओंकी संख्या भिन्न भिन्न है ॥ ६०३ ॥ ये स्थिर तारे लवण समुद्रमें एक सौ उनतालीस और धातकीखण्ड द्वीपमें एक हजार दश हैं ॥ ६०४ ॥ १३९ । १०१० । ___ कालोद समुद्रमें इकतालीस हजार एक सौ बीस और पुष्करार्द्ध द्वीपमें तिरेपन हजार दो सौ तीस स्थिर तारे हैं ॥ ६०५ ॥ ४११२० । ५३२३० । मनुष्यलोकके भीतर एक पार्श्वभागमें छयासठ और दोनों पार्श्वभागोंमें इससे दूने चन्द्र तथा इतने मात्र ही सूर्य भी हैं ॥ ६०६ ॥ ६६ । १३२ । मनुष्यलोकमें ग्यारह हजार छह सौ सोलह ग्रह और तीन हजार छह सौ छ्यानबै नक्षत्र हैं ॥ ६०७ ॥ ११६१६ । ३६९६ । मनुष्यक्षेत्रमें अठासी लाख चालीस हजार सात सौ कोड़ाकोड़ी तारे हैं ॥ ६०८॥ . ८८४०७००००००००००००००००। मनुष्यों के क्षेत्रमें पंचानबै हजार पांच सौ पैंतीस स्थिर तारा स्थित हैं ॥ ६०९॥ ९५५३५। चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारा, ये सब अपने अपने पथोंकी प्रणिधियों में पांक्ति रूपसे नभखण्डोंमें संचार करते हैं ॥ ६१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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