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-७.५६३) सत्तमो महाधियारो
[७५३ सगचउणहणवएका अंककमे पणखदोणि अंसा य । इगिअट्ठदुएक्कहिदा कालोदयजगदिविचालं ॥ ५५८
१९०४७ । २०५ सुण्णं चउठाणेका अंककमे अपंचतिणि कला । णवचउपंचविहत्तो विच्चालं पुक्खरद्धम्मि ॥ ५५१ .
एदाणि अंतराणि पढमप्पहसंठिदाण चंदाणं । विदियादीण पहाणं अधिया अभंतरे बहिं ऊणा ॥ ५६० लवणादिचउकाणं वासपमाणम्मि णियससिदलाणं । बिबाणिं फेलित्ता तत्तो णियचंदसंखअद्धेणं ॥५६१ भजिदूर्ण जं लद्धं तं पत्तेकं ससीण विञ्चालं । एवं सम्वपहाणं अंतरमेदम्मि णिहिटं ॥ ५६२ णवणउदिसहस्सं. णवसयणवणउदि जोयणा य पंच कला । लवणतमुद्दे दोण तुसारकिरणाण विश्वालं ॥
__ कालोदक समुद्रकी जगती और अन्तर वीथीके मध्यमें सात, चार, शून्य, नौ और एक, इन अंकोंके क्रमसे उन्नीस हजार सैंतालीस योजन और बारह सौ इक्यासीसे भाजित दो सौ पांच भाग अधिक अन्तराल है ॥ ५५८ ॥ १९०४७२३४५३ ।
पुष्करार्द्ध द्वीपमें यह अन्तरालप्रमाण शून्य और चार स्थानों में एक, इन अंकोंके क्रमसे ग्यारह हजार एक सौ दश योजन और पांच सौ उनचाससे भाजित तीन सौ अट्ठावन कला अधिक है ॥ ५५९ ॥ ११११०३५६ ।
प्रथम पथमें स्थित चन्द्रोंके ये उपर्युक्त अन्तर अभ्यन्तरमें द्वितीयादिक पथोंसे अधिक और बाह्यमें उनसे रहित हैं ॥ ५६०॥
लवणसमुद्रादिक चारोंके विस्तार प्रमाणमेंसे अपने चन्द्रोंके आधे बिम्बोंको घटाकर शेषमें निज चन्द्रसंख्याके अर्धभागका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक चन्द्रोंका अन्तरालप्रमाण होता है । इस प्रकार यहांपर सब पथोंका अन्तराल निर्दिष्ट किया गया है ।।५६१-५६२॥
____ल. स. का विस्तार २०००००, २००००० = १ २ २ ० ०० ००; चार चन्द्रबिम्बोंका वि. २२४, २२४ २ = ११२, १२ २००० ० ० रिण + ११.२ = १ २ १ ८ ९८०८, ल. स. चन्द्र ९९९९९६१५ ल. समुद्रमें दो चन्द्रोंका अन्तर प्रमाण ।
___ लवण समुद्र में दो चन्द्रोंके बीच निन्यानबै हजार नौ सौ निन्यानबै योजन और पांच कला अधिक अन्तराल है ॥ ५६३ ॥ ९९९९९६३ । TP. 95
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