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________________ -७.५११] सत्तमो महाधियारो · सत्तरसट्ठीणि हु चंदे सूरे बिसटिभहियं च । सत्तट्ठी वि य भगणा चरई मुहुर्तण भागाणं ॥ ५०० १७६८ । १८३०। १८३५ । चंदरविगयणखंडे अण्णोष्णविसुद्धसेसबासट्ठी । एयमुहुत्तपमाणं बासहिफलिच्छया तीसा ॥ ५.८ १। ६२ । ३०। एय?तिष्णिसुण्णं गयणखंडेण लब्भदि मुहुत्तं । भट्टरसट्ठी य तहो गयणक्खंडेण किं लई ॥ ५.. १८३० । १८६० ।।। दादो सिग्धगदी दिवसमुहुत्तेण चरदि खलु सूरो । एक्कं चेव मुहुत्तं एवं एयहिभागं च ॥ ५. रविरिक्खगमणखंडे अण्णोण्णं सोहिऊण जं सेसं । एयमुहुत्तपमाणं फल पण इच्छा तहा तीस ॥ ५॥ १।५।३०। चन्द्र एक मुहूर्तमें सत्तरह सौ अड़सठ गगनखण्डोंको लांघता है। इसकी अपेक्षा सूर्य बासठ गगनखण्ड अधिक और नक्षत्रगण सड़सठ गगनखण्ड अधिक लांघते हैं ॥५०७॥ १७६८ + ६२ = १८३० । १७६८ + ६७ = १८३५ । __ चन्द्र और सूर्यके गगनखण्डोंको परस्पर घटानेपर बासठ शेष रहते हैं । जब सूर्य एक मुहूर्तमें चन्द्रकी अपेक्षा बासठ खण्ड अधिक जाता है तब वह तीस मुहूर्तमें कितने खण्ड अधिक जावेगा ! इस प्रकारके त्रैराशिकमें यहां एक मुहूर्त प्रमाणराशि, बासठ फलराशि और तीस मुहूर्त इच्छाराशि होती है ॥ ५०८ ॥ ६२ ४ ३० = १८६० । जब एक, आठ, तीन और शून्य अर्थात् अठारह सौ तीस गगनखण्डोंके अतिक्रमणमें एक मुहूर्त प्राप्त होता है तो अठारह सौ साठ गगनखण्डोंके अतिक्रमणमें क्या प्राप्त होगा ! ॥ ५०९॥ १८६० - १८३० = १६ मु.। सूर्य चन्द्रमाकी अपेक्षा दिनमुहूर्त अर्थात् तीस मुहूर्तोमें एक मुहूर्त और एक मुहर्तके इकसठवें भाग अधिक शीघ्र गमन करता है ॥ ५१० ॥ सूर्य और नक्षत्रोंके गगनखण्डोंको परस्पर घटाकर जो शेष रहे उसे ग्रहण करनेपर यहाँ एक मुहूर्त प्रमाणराशि, पांच फलराशि और तीस मुहूर्त इच्छाराशि है ॥ ५११ ॥ ३० x ५ = १५० गगनखण्ड । १ब विअहि. TP. 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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