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________________ -७. १५४.] सत्तमा महाधियारो [७३५ लंघतकाले' (?) भरहेरावदखिदीसु पविसंति । ताधे पुषुत्ताई रत्तीदिवसाणि जायति ॥ ४.. एवं सम्वपहेसुं उदयत्थमणाणि ताणि णादूर्ण । पडिवीहिं दिवसणिसा बाहिरमागतमाणेज्ज ॥ ४५१ सम्वपरिहीसु बाहिरमग्गट्टिदे दिवहणाहबिम्मि । दिणरत्तीओ बारस अट्ठरसमुहुत्तमेत्ताओ ॥ ४५२ बाहिरपहादु आदिमपदम्मि दुमणिस्स आगमणकाले । पुज्वुत्तदिणणिसादी हुवंति अधियाओ ऊणाओ ॥ मत्तंडदिणगदीए एक्कं चिय लब्भदे उदयठाणं । एवं दीवे वेदीलवणसमुद्देसु आणेज्ज ॥ ४५४ जिस समय उक्त दोनों सूर्य प्रथम मार्गमें प्रवेश करते हुए क्रमशः भरत और ऐरावत क्षेत्रमें प्रविष्ट होते हैं, उसी समय पूर्वोक्त दिन-रात्रियां होती हैं ॥ ४५० ।। इस प्रकार सर्व पथोंमें उन उदय व अस्तमनोंको जानकर सूर्यके बाह्य मार्गमें स्थित प्रत्येक वीथीमें दिन व रात्रि प्रमाणको ले आना चाहिये ॥ ४५१ ।। सूर्यबिम्बके बाह्य मार्गमें स्थित होनेपर सब परिधियोंमें बारह मुहूर्तमात्र दिन और अठारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है ॥ ४५२ ॥ सूर्यके बाह्य पथसे आदि पथकी ओर आते समय पूर्वोक्त दिन व रात्रि क्रमशः उत्तरोत्तर अधिक और कम होती हैं ॥ ४५३ ॥ सूर्यकी दिनगतिमें एक ही उदयस्थान लब्ध होता है । इस प्रकार द्वीप, वेदी और लवणसमुद्रमें उदयस्थानोंके प्रमाणको लेआना चाहिये ॥ ४५४ ॥ उदाहरण - वेदिकासे रहित जम्बूद्वीपका चारक्षेत्र १७६ = १०७ ३.६ . सूर्यकी दिनगति १७.०१०४३६ १७ ६३,२.६. द्वीप उदयस्थान । वेदिका चारक्षेत्र यो. ४ = ६४ : १६० = ११७ वेदिका उदयस्थान । ल. स. चारक्षेत्र ( बिम्बविस्तारसे रहित ) यो. ३३० = २ ० १ ३ ०. २ ० १ ३ ० १४१ = ११८५७० ल. स. उदयस्थान । ६३२६ + १५४ + ११८५७ = १८३, इसके अतिरिक्त बाह्य पथमें उदयस्थान १, १८३ + १ = १८४ सर्व उदयस्थान । १बलंघंतकाले. २६ब मग्गस्थमाणेज्ज, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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