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सत्तम। महाधि
[ ७३३
उवरिम्मि नीलगिरिणो तेत्तियमाणेण पदममरगगदो । एरावदम्मि विजए चक्की देक्खति इयररविं ॥ ४३४ मग्गेक्कमुहुत्ताणिं खेमादीतियपुरम्मि अधियागिं । किंचूणएक्कणाली' रत्ती य भरिणयरम्मि || ४३५ णालि १ ।
ता खगापुरी अत्थमणं होदि मंजुसपुरम्मि । अवरणहमधियगलिया ओसहियगयरम्नि साधियमुहुत्तं ॥ तावे मुहुत्तमधियं अवरण्डं पुंडरीगिणीणयरे । तद्यणिधी सुररणे दोणि मुहुत्ताणि अदिरेगो || ४३७ तक्कालम्मि सुसीमप्पणधीए सुवणम्मि पढमपहे । होदि यवरण्हकालो तिपिंग मुहुत्ताणि अदिरेगो || ४३८ तिय तिय मुहुत्तमधिया सुसीमकुंडलपुरम्मि दो दो य । एक्केकसात्रियाणि य अवराजिदपकरंक पउमपुरे ॥ सुभरे अवरहं साधियणाली य होदि परिमाणं । णालितिभागं रत्ती किंचूगं रयणसंचयपुरमि ॥ ४४० एवम् उदओ जंकाले होदि कमलबंधुस्स । तावे दिगरसीओ अवरविदेदेसु साहेमि ॥ ४४१
ऐरावत क्षेत्र के चक्रवर्ती उतने ही योजनप्रमाण ( ५५७४३३३ ) नील पर्वत के ऊपर प्रथम मार्ग में स्थित द्वितीय सूर्यविम्बको देखते हैं ॥ ४३४ ॥
भरत क्षेत्र में सूर्यके उदित होनेपर क्षेमा आदिक तीन पुरोंमें एक मुहूर्तसे कुछ अधिक और अरिष्टनगर में कुछ कम एक नाली ( घड़ी ) प्रमाण रात्रि होती है ॥ ४३५ ॥
उस समय खड्गपुरीमें सूर्यास्त, मंजूषपुरमें एक नालीसे अधिक अपराह्न, और औषधीनगर में वह (अराह मुहूर्त से अधिक होता है | ॥ ४३६ ॥
उस समय पुण्डरीकिणी नगरमें वह अपराह्न एक मुहूर्तसे अधिक और इसके समीप देवारण्य में दो मुहूर्त से अधिक होता है ॥ ४३७ ॥
इसी समय प्रथम पथमें सुसीमा नगरीके समीप देवारण्य में तीन मुहूर्तसे अधिक अपराह्न काल होता है ॥ ४३८ ॥
इस समय सुसीमा व कुण्डलपुरमें तीन तीन मुहूर्तसे अधिक, अपराजित व प्रभंकर पुरमें दो दो मुहूर्त से अधिक, अंकपुर व पद्मपुर में एक एक मुहूर्त से अधिक, और शुभ नगर में एक नाली से अधिक अपराह्न काल होता है । इसके अतिरिक्त रत्नसंचय पुरमें उस समय कुछ कम नालीके तीसरे भागप्रमाण रात्रि होती है ।। ४३९-४४० ॥
जिस समय ऐरावत क्षेत्र में सूर्य का उदय होता है उस समय अपर विदेहों में होनेवाले दिन-रात्रिविभागों को कहता हूं ॥ ४४१ ॥
१ द दुक्खंति तियररविं, व देवखंति रयररविं. ४ द सुरचरणे दोण्णि य. ५ द व भविया.
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२ ब किंणं एक्का णाली. ६ द तादे.
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३द व मुलिया.
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