SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -७. ४२९] सत्तमो महाधियारो . तियजोयणलक्खाणि छरच सहस्साणि पणसयाणि पि । सीदिजुदाणिं आदिममग्गादो तस्स परिमाणं॥ ३०६५८० णवणवदिसहस्साणिं छस्सयचत्ताल जोयणाणि च । परिमाणं णादच्वं आदिममग्गस्स सूईए ॥ ४२६ ९९६४०। तियठाणेसुं सुण्णा चउछप्पंचदुखछणवसुण्णा | पंचदुगंककमेणं एक्कं छत्तिभजिदा अ धणुवग्गो॥ ४२७ २५०९६०२५६१.०० तेसीदिसहस्सा तियसयाणि सत्तत्तरी य जोयणया । णव य कलाभो आदिमपहादु हरिवरुसधणुपढें ॥ ८३३७७ : तद्धणुपदस्पर्बु सोधेज्जसुचखुपासखेत्तम्मि। ज अवसेसपमाणं णिसधाचल उवरिमखिदी सा॥ ४२९ ४१६८८ १६ ___ आदिम मार्गसे उस हरिवर्ष क्षेत्रके वाणका प्रमाण उन्नीससे भाजित तीन लाख छह हजार पांच सौ अस्सी योजनमात्र होता है ॥ ४२५ ॥ ३० ६ ५८० । प्रथम मार्गकी सूची का प्रमाण निन्यानवै हजार छहसौ चालीस योजनमात्र जानना चाहिये ।। ४२६ ॥ ९९६४० । तीन स्थानों में शून्य, चार, छह, पांच, दो, शून्य, छह, नौ, शून्य, पांच और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उसमें तीन सौ इकसठका भाग देनेपर लब्ध राशिप्रमाण हरिवर्षक्षेत्रके धनुषका वर्ग होता है । ।। ४२७ ॥ २५ ० ९६ ० २५६ ४ ० ० ० आदिम पथसे हरिवर्षक्षेत्रका धनुःपृष्ठ तेरासी हजार तीन सौ सतत्तर योजन और नौ कलाप्रमाण है ।। ४२८ ॥ ८३३७७३ । इस धनुःपृष्टप्रमाणके अर्ध भागको चक्षुस्पर्श क्षेत्रमेंसे कम कर देनेपर जो शेष प्रमाण रहे उतनी निषधपर्वतकी उपरिम पृथिवी है [ जहांपर उदित हुए सूर्यबिम्बको अयोध्यापुरीमें भरतादिक चक्रवर्ती देखते हैं ] ॥ ४२९॥ हरिवर्षका धनुषपृष्ठ ८३३७७२२३ = १५ ८४.१ ७२; इसका आधा = १५८४ १ ७२ = १ ५ ८ ४ १ ७ २०; चक्षुस्पर्शक्षेत्र ४७२६३३२ = ९४ ५ २ ६७ = १७ ९६ ०.० ७३; १७ ९६ ०.०७३ - १५८४ १.७ २ ० = २ १ १ ८ ३ ५ ३ = ५५७४३३३ निषध पर्वतकी उपरिम पृथिवीका प्रमाण । १९ ३८० ३८. १दबलबसेस.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy