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-७. ३९६ ]
सत्तम महाधियारो
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छत्तियभट्ठतिछक्का अंककमे णवयसत्तछकंसा | पंचेकणवविद्दत्ता बिदियपद्दकम्मि बाहिरे तिमिरं ॥ ३९२
༢༣༧༣༣ །༢.༠༢|
एवं दुचरिममग्गंतं' दब्वं ।
सत्तणवछक्कपणणभएक्कंककमेण दुगसगतियंसा । णभतियअट्ठे कहिदा लवणोदहिछट्टभागतमं ॥ ३९३
३७२
१०५६९७
एवं सेस वीहिं पडि जामिणीमुहुत्ताणिं । ठविणाणेज्ज तमं छक्कोणिय दुसयपरिद्दीसुं ॥ ३९४
१९४ | सव्यपरिधीसु रतिं अट्ठरसमुहुत्तयाणि रविबिंबे । बहिपहठिदम्मि एदं धरिऊण भणामि तमखेत्तं ॥ ३९५ इच्छयपरिस्यरासिं तिगुणं काढूण दसहिदे लद्धं । होदि तिमिरस्स खेत्तं बाहिरमग्गट्टिदे सूरे ॥ ३९६
सूर्यके द्वितीय मार्ग में स्थित होनेपर बाह्य पथ में तिमिरक्षेत्र छह, तीन, आठ, तीन और छह, इन अंकोंके क्रमसे तिरेसठ हजार आठ सौ छत्तीस योजन और नौ सौ पन्द्रह से भाजित छह सौ उन्यासी भाग अधिक है || ३९२ ॥ ६३८३६६१६
इस प्रकार द्विचरम मार्ग तक ले जाना चाहिये ।
सूर्यके द्वितीय मार्ग में स्थित होनेपर लवणोदधिके छठे भागमें तिमिरक्षेत्र सात, नौ, छह, पांच, शून्य और एक, इन अंकोंके क्रमसे एक लाख पांच हजार छह सौ सत्तानौ योजन और अठारह सौ तीस से भाजित तीन सौ बहत्तर भाग अधिक है ॥ ३९३ ॥ १०५६९७ इ 1
इस प्रकार शेष पथों में से प्रत्येक वीथीमें रात्रिमुहूर्तों को स्थापित करके छह कम दो सौ अर्थात् एक सौ चौरानवे परिधियों में तिमिरक्षेत्रको ले आना चाहिये । ( देखो विशेषार्थ गा. नं. ३४३ ) ॥ ३९४ ॥
सूर्यबिम्बके बाह्य पथमें स्थित होनेपर सब परिधियों में अठारह मुहूर्तप्रमाण रात्रि होती है, इसका आश्रय करके तमक्षेत्रको कहता हूं ॥ ३९५ ॥
इच्छित परिधिराशिको तिगुणा करके दशका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना सूर्यके बाह्य मार्ग में स्थित होने पर विवक्षित परिधि में तिमिरका क्षेत्र होता है ॥ ३९६ ॥
९४८६६; ९४८६६+ १०
=
उदाहरण- इच्छित मेरुपरिधि ३१६२२ × ३ =
-
९४८६३ तिमिरक्षेत्र ।
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१ द ब मग्गो चि. २ द व भागतं. ३ द व बिनं.
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