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________________ -७. ३८७ ] सत्तमौ महाधियारो [ ७२३ छण्णव चउक्कपणचड अंककमे णवयपंचसगपंचा। अंसा मज्झिमपणिहीत मखेत्तमरिणयरीए ॥ ३८३ ५७५९ १४६४० एकं छच्चभट्ठा चउ अंककमेण पंचपंचट्ठा। णव य कलाओ खग्गामज्झिमपणधीए तिमिरखिदी ॥ ३८४ ४५४९६ ४८४६१ दुगणभवेकपंचा अंककमे णवयछक्कसत्तट्टा | अंसा मंजुसणयरीमज्झमपणधीए तमखेत्तं ॥ ३८५ | सत्तछअटूचउक्का पंचककमेण जोयणा अंसा । पंचभट्टदुगेका ओसहिपुरपणिधितमत्तं ॥ ३८६ | ५१९०२ ५४८६७ Jain Education International ९८५५ १४६४० ५८३०८ ८७६९ १४६४० भट्टखतिभद्वपंचा अंक कमेण जोयणाणि अंसा य । णवसगसगएक्केक्का तमखेत्तं पुंडरीगिणीणयरे ।। ३८७ I | १२८६५ १४६४० ११७७९ १४६४० अरिष्ट नगरी के मध्यम प्रणिधिभाग में तमक्षेत्र छह, नौ, चार, पांच और चार, इन अंकों के क्रमसे पैंतालीस हजार चार सौ छयान योजन और पांच हजार सात सौ उनसठ भाग अधिक रहता है || ३८३ ॥ ४५४९६६४६४८ । खड्गा पुरीके मध्यम प्रणिधिभाग में तिमिरक्षेत्र एक, छह, चार, आठ और चार, इन अंकोंके क्रमसे अड़तालीस हजार चार सौ इकसठ योजन और नौ हजार आठ सौ पचवन कला अधिक रहता है || ३८४ ॥ ४८४६१२४६४० T मंजूषा नगरीके मध्यम प्रणिविभाग में तमक्षेत्र दो, शून्य, नौ, एक और पांच, इन अंकों के क्रमसे इक्यावन हजार नौ सौ दो योजन और आठ हजार सात सौ उत्तर भाग प्रमाण है ॥ ३८५ ॥ ५१९०२ ८७६९ रहता । औषधि पुरके प्रणिधिभाग में तमक्षेत्र सात, छह, आठ, चार और पांच, इन अंकों के क्रमसे चौवन हजार आठ सौ सड़सठ योजन और बारह हजार आठ सौ पैंसठ भाग प्रमाण रहता है ।। ३८६ ।। ५४८६७११६६५ / पुण्डरीकिणी नगरी तमक्षेत्र आठ, शून्य, तीन, आठ और पांच, इन अंकों के क्रमसे अट्ठावन हजार तीन सौ आठ योजन और ग्यारह हजार सात सौ उन्यासी भाग प्रमाण रहता है ।। ३८७ ।। ५८३०८१४ः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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