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-७. ३७८ ] सत्तमो महाधियारो
[ ७२१ तेसटिसहस्साणि चउवीसं जोयणाणि चउ भंसा । तदियपहतिमिरभूमी मत्तंडे पढममग्गगदे ॥ ३७४
६३०२४ || ___एवं मज्झिममग्गंतं णेदव्वं । तेसट्रिसहस्साणि तिसया चालीस जोयणा दुकला। मज्झिमपहतिमिरखिदी तिव्वकरे पढममग्गठिदे ॥३७५
एवं दुचरिमपरियंतं णेदवं । तेसट्टिसहस्साणि छस्सयबासटिजोयणाणि कला । चत्तारो बहिमग्गे तमखेत्तं पढमपहठिदे तवणे ॥३७॥
एक्कं लक्ख णवजुदचउवण्णसयाणि जोयणा अंसा । जलछट्ठभागतिमिरं उण्हयरे पढममग्गठिदे ॥ ३७७
इच्छियपरिरयरासिं सगसट्टीतियसएहिं गुणिदृणं । णभतियअटेक्वहिदे तमखेत्तं विदियपहठिदे सूरे ॥ ३७८
३६७
सूर्यके प्रथम मार्गमें स्थित रहनेपर तृतीय पथमें तिमिरक्षेत्र तिरेसठ हजार चौबीस योजन और चार भाग अधिक रहता है ॥ ३७४ ॥ ६३०२४४ ।
इस प्रकार मध्यम मार्ग तक ले जाना चाहिये ।
तीनकर अर्थात् सूर्यके प्रथम मार्गमें स्थित होनेपर मध्यम पथमें तिमिरक्षेत्र तिरेसठ हजार तीन सौ चालीस योजन और दो कला अधिक रहता है ॥ ३७५ ॥ ६६३४०३ ।
इस प्रकार द्विचरम मार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिये ।
सूर्यके प्रथम पथमें स्थित होनेपर बाह्य मार्गमें तमक्षेत्र तिरेसठ हजार छह सौ बासठ योजन और चार कला अधिक रहता है ॥ ३७६ ॥ ६३६६२४ ।
सूर्यके प्रथम मार्ग में स्थित होनेपर लवणसमुद्रसम्बन्धी जलके छठे भागमें तिमिरक्षेत्र एक लाख चौवन सौ नौ योजन और एक भाग अधिक रहता है ॥ ३७७ ॥
१०५४०९३ । इष्ट परिधिराशिको तीन सौ सड़सठसे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें अठारह सौ तीसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर विवक्षित परिधिमें तमक्षेत्रका प्रमाण होता है ॥ ३७८ ॥ TP. 91
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