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________________ ७२० तिलोयपण्णत्ती [७. ३६९एक्कावण्णसहस्सा सत्तसया एक्कसहि जोयणया । सत्तंसा तमखेत्तं मंजुसपुरमापगिधीए ॥ ३६९ पउवण्णसहस्सा सगसयाणि अट्टरसजोयणा भंसा। पण्णरस ओसहीपुरबहमज्झिमपणिधितिमिरखिदी। ५४७१८३५ भट्ठावण्णसहस्सा इगिसय उणवण्ण जोयणा मंसा । सगतीस पुंडरीगिणिपुरीए बहमझपणिधितमं ॥३॥ तेसहिसहस्साणि सत्तरसं जोयणाणि चउअंसा। पंचहिदा पढमपहे तमपरिही पहठिददिसे ॥ ३७२ ६३०१७ १६|| तेसटुिसहस्साणि जोयणया एक्कवीस एक्ककला । बिदियपहतिमिरखेत्तं आदिममग्गहिदे सूर ॥ ३३ मंजूषपुरकी मध्यप्रणिधिमें तमक्षेत्र इक्यावन हजार सात सौ इकसठ योजन और सात भागमात्र रहता है ॥ ३६९ ॥ ५१७६१४। औषधीपुरकी बहुमध्यप्रणिधिमें तिमिरक्षेत्र चौवन हजार सात सौ अठारह योजन और पन्द्रह भागप्रमाण रहता है ।। ३७० ॥ ५४७१८४६ । पुण्डरीकिणी पुरीकी बहुमध्यप्रणिधिमें तमका प्रमाण अट्ठावन हजार एक सौ उनचास योजन और सैंतीस भाग अधिक रहता है ॥ ३७१ ॥ ५८१४९३७ । सूर्यके प्रथम पथमें स्थित होनेपर प्रथम पथमें तमकी परिधि तिरेसठ हजार सत्तरह योजन और चार भागप्रमाण होती है ॥ ३७२ ॥ ६३०१७४ । सूर्यके आदिम मार्गमें स्थित होनेपर द्वितीय पथमें तिमिरक्षेत्र तिरेसठ हजार इक्कीस योजन और एक कला अधिक रहता है ॥ ३७३ ॥ ६३०२१६ । १द नोयणया चउकलाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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