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________________ ७१४] तिलोयपण्णत्ती [७. ३३९चउणउदिसहस्सा इगिसयं च अडणउदि जोयणा अंसा । तेसट्ठी दोणि सया तदियपहक्कम्मि तुरिमपहताओ॥ एवं मझिल्लपहआइल्लपरिहिपरियंतं णेदव्यं । चउणवदिसहस्पा छस्सयाणि च उसटि जोयणा अंला । चउहत्तर अट्टसया तदियपहक्कम्मि मज्झपहताओ॥ . एवं दुचरिममग्गंतं णेद्व्वं । । पणणउदिसहस्सा इगिसयं च छादाल जोयणाणि कला। अत्तरि पंचसया तदियपहक्कम्मि बहिपहे ताओ ॥ सगतियपणसगपंचा एक्कं कमसो दुपंचचउएकका | अंसा हुवेदि ताओ तदियपहक्कम्मि लवणछटुंसे ॥३४२ १५७५३० / ३४५२ ॥ धरिऊण दिणमुहुत्ते' पडिवीहिं सेसएसु मग्गेमु । सव्वपरिहीण तावं दुचरिममग्गंत णेदव्वं ॥ ३४३ . सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित होनेपर चतुर्थ मार्गमें तापक्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ अट्ठानबै योजन और दो सौ तिरेसठ भागप्रमाण रहता है ॥ ३३९ ॥ ९४१९८२.६३ । इस प्रकार मध्यम पथकी आदि परिधि पर्यन्त ले जाना चाहिये । सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर मध्यम पथमें तापक्षेत्र चौरानबै हजार छह सौ चौंसठ योजन और आठ सौ चौहत्तर भाग प्रमाण रहता है ॥ ३४० ॥ ९४६६४६४। इस प्रकार द्विचरम मार्ग तक ले जाना चाहिये। सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित होनेपर बाह्य पथमें तापक्षेत्र पंचानबै हजार एक सौ छयालीस योजन और पांच सौ अठहत्तर कला प्रमाण रहता है ॥ ३४१ ॥ ९५१४६३५५८ । सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित होनेपर लवण समुद्रके छठे भागमें तापक्षेत्र साल, तीन, पांच, सात, पांच और एक, इन अंकों के क्रमसे एक लाख सत्तावन हजार पांच सौ सैंतीस योजन और एक हजार चार सौ बावन भाग प्रमाण रहता है ॥ ३४२ ॥ १५७५३७१४५२ ।। इसी प्रकार प्रत्येक वीथीमें दिनके मुहूर्तोंका आश्रय करके शेष मागोंमें द्विचरम मार्ग तक सब परिधियोंमें तापक्षेत्रको निकाल लेना चाहिये ॥ ३४३ ॥ १ द ब दिणमुहुत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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