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________________ -७. ३३८ ] सत्तमो महाधियारो [ ७१३ असगसक्का भककमेण पंचदुगएक्का । अट्ठ य असा ताओ तदियपह+कम्मि ओसहपुरीए ॥ ३३४ ८१२५ १४६४० सत्तणभणवयछक्का अटंककमेण णवसगट्ठेक्का । अंसा होदि हु ताओ तदियपहक्कम्मि पुंडरीगिणिए' ॥ १८७९ | १४६४० दुगअट्ठएक्कचउणव अंककमे तिदुगछक्क अंसा य । णभतियभट्ठेक्कहिदा तदियपहक्कम्मि पढमपहताओ ॥ ६२३ ९४१८२ १८३० दिसहस्सा इगिसयं च सगसीदि जोयणा अंसा। बाहत्तरि सत्तसया तदियपहक्कम्मि बिदियपद्दताभो ॥ ८१७७८ ७७२ १८३० उदिसहस्सा इगिसयं च बाणउदि जोयणा अंसा । सोलससया तिरधिया तदियपहक्कम्मि तदियपहताभो ॥ ९४१९२ ८६९०७ TP. 90 सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर औषधीपुरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण आठ, सात, सात, एक और आठ, इन अंकोंके क्रमसे इक्यासी हजार सात सौ अठहत्तर योजन और आठ हजार एक सौ पच्चीस भाग अधिक रहता है ॥ ३३४ ॥ ८१७७८४६४ । ९४१८७ सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर पुंडरीकिणी नगरीमें तापक्षेत्र सात, शून्य, नौ, छह और आठ, इन अंकोंके क्रमसे छयासी हजार नौ सौ सात योजन और एक हजार आठ सौ उन्यासी भाग प्रमाण होता है ॥ ३३५ ॥। ८६९०७१४६४० । १ एषा गाथा या पुस्तके नास्ति. १६०३ १८३० सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर प्रथम पथमें तापक्षेत्र दो, आठ, एक, चार और नौ, इन अंकों के क्रमसे चौरानबे हजार एक सौ व्यासी योजन और एक हजार आठ सौ तीससे भाजित छह सौ तेईस भाग प्रमाण रहता है ॥ ३३६ ॥ ९४१८२६ । Jain Education International सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर द्वितीय पथमें तापक्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ सतासी योजन और सात सौ बहत्तर भाग प्रमाण रहता है ॥ ३३७ ॥ ९४१८७÷३ । सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर तृतीय पंथमें तापक्षेत्रका प्रमाण चौरानबे हजार एक सौ बानत्रै योजन और सौलह सौ तीन भाग अधिक रहता है ॥ ३३८ ॥ ९४१९२६ / For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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