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________________ तिलोयपण्णत्ती [७. २७५चउगोउरजुत्तेसु जिणभवणभूसिदेसु रम्मेसुं । चेटुंते रिटुसुरा बहुपरिवारहिं परियरिया ॥ २७५ मत्तंडमंडलाणं गमणविसेसेण मणुवलोयम्मि । जे दिणरत्ति य' भजिदा जादा तेसि परवेमो ॥ २७६ पठसपहे दिणबइणो संठिदकालम्मि सम्बपरिहीसुं । अटरसमुहुत्ताणिं दिवसो बारस णिसा होदि ॥ २७७ १८। १२ । बाहिरमग्गे रविणो संठिदकालम्मि सव्वपरिहीसुं । अट्टरसमुहुत्ताणि रत्ती बारस दिणं होदि ॥ २७८ १८ । १२ । भूमीय मुहं सोधिय रूऊणेणं पहेण भजिदव्वं । सा रत्तीए दिणादो वड्डी दिवसस्स रत्तीदो' ॥ २७९ तस्स पमाणं दोणि य मुहुत्तया एक्कसहिपविहत्ता । दोहं दिणरत्तीणं पडिदिवसं हाणिवडीभो ॥ २८० चार गोपुरोंसे संयुक्त, जिनभवनोंसे विभूषित, और रमणीय उन नगरतलोंमें बहुत परिवारोंसे घिरे हुए केतु देव रहते हैं ॥ २७५ ॥ मनुष्यलोकमें सूर्यमण्डलोंके गमनविशेषसे जो दिन व रात्रिके विभाग हुए हैं उनका निरूपण करते हैं ॥ २७६ ॥ सूर्यके प्रथम पथमें स्थित रहते समय सब परिधियोंमें अठारह मुहूर्तका दिन और बारह मुहूर्तकी रात्रि होती है ॥ २७७ ॥ दिन १८ मु. । रात्रि १२ मु. । सूर्यके बाह्य मार्गमें स्थित रहते समय सब परिधियोंमें अठारह मुहूर्तकी रात्रि और बारह मुहूर्तका दिन होता है ॥ २७८ । रात्रि १८ मु. । दिन १२ मु. । भूमिमेंसे मुखको कम करके शेषमें एक कम पथप्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध आवे .. उतनी दिनसे रात्रिमें और रात्रिसे दिनमें वृद्धि होती है ॥ २७९ ॥ ___ भूमि मुहूर्त १८, मुख मु. १२; १८ -- १२ = ६; पथ १८४ - १ = १८३; ६ + १८३ = ४३ = ६२ मुहूर्त वृद्धि । उपर्युक्त वृद्धिका प्रमाण इकसठसे विभक्त दो मुहूर्त है। इतनी प्रतिदिन दोनों दिनरात्रियोंमें हानि-वृद्धि हुआ करती है ॥ २८० ॥ १। ३ द ब दिण. ४द ब रतितो. ' १६ ब चउगोउरखे तेसं. २६ बजे दिणवराति. ५६ १२ व ११ ते वा १७३ । १ ।। Jain Education international Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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