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________________ ६८६) तिलोयपण्णत्ती । ७. १८०एक्कं जोयणलक्खं णव य सहस्साणि अडसयाणि पि । परिहीणं पत्तेक्कं ते कादम्बा गयणखंडा॥ १८. १०९८००। गच्छवि मुहुत्तमेक्के भरसट्ठीजुत्तसत्तरसयाणि । गभखंडाणि ससिणो तम्मि हिदे सम्वगयणखंगणिं ॥१८॥ १७६८। पासहिमुहुत्ताणिं भागा तेवीस सत्तहाराई । इगिवीसाधिय विसदं लद्धं तं गयणखंडादो ॥ १८२ भन्भंतरवाहीदो बाहिरपेरंत दोण्णि ससिविंबा । कमसा परिभमंते यासहिमुहुत्तएहिं भधिएहिं ॥ १८३ मदिरेयस्स पमाणं मंसा तेवीसया मुहुत्तस्स । हारो दोणि सयाणिं जुत्ताणि एक्कवीसेणं ॥ १८४ ___ उन परिधियोंमेंसे प्रत्येकके एक लाख नौ हजार आठ सौ योजन प्रमाण वे गगनखण्ड करना चाहिये ।। १८० ॥ १०९८०० । चन्द्र एक मुहूर्तमें सत्तरह सौ अड़सठ गगनखण्डोंका अतिक्रमण करते हैं । इसलिये इस राशिका समस्त गगनखण्डोंमें भाग देनेपर बासठ मुहूर्त और एक मुहूर्तके दो सौ इक्कीस भागोंमेंसे तेईस भाग लब्ध आते हैं ॥ १८१-१८२ ।। मुहूर्तमात्रमें अतिक्रमणीय खण्ड १७६८; समस्त गगनखण्ड १०९८००; १०९८०० १७६८ = ६२३३४ मुहूर्त कुल गगनखण्डोंका अतिक्रमणकाल । दोनों चन्द्रविम्ब क्रमसे अभ्यन्तर वीथीसे बाह्य बीथी पर्यन्त बासठ मुहूर्त से अधिक कालमें परिभ्रमण करते हैं ॥ १८३ ॥ इस अधिकताका प्रमाण एक मुहूर्तके तेईस भाग और दो सौ इक्कीस हार रूप अर्थात् . तेईस बटे दो सौ इक्कीस है ॥ १८४ ॥ ३३३ । १६ असयाणं; व अट्ठसयाणि. २ ब खंडाणि. ३ ब मुहत्मेत्तमेक्के. ४द ब १२।२३ ।. ५१६९. ६ व तेवीसमो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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