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________________ १८४ तिलोयपण्णत्ती [७. १७१. सत्तसया इक्कहिया लक्खा तिणेव सोलससहस्सा । इक्कसयं सगताला भागा भट्ठमपहे परिही ॥१७॥ ३१६७०/३४७ सोलससहस्सणवसयइकत्तीसादिरित्ततियलक्खाणउदीजुददुसयकला ससिस्स परिही णवममग्गे||१७२ ३१६९३१ १३० बासटिजुत्तइगिसयसत्तरससहस्सै जोयण तिलक्खा । छ च्चिय कलाओ परिही हिमंसुणो दसमवीहीए ॥ ३१७१६२ | १३. तियजोयणलक्खाणि सत्तरससहसतिसयबागउदी। उणवण्णजुदसदंसा परिही एक्कारसपहम्मि ॥ १७४ ३१७३९२ / ३५७/ आठवें पथमें उस परिधिका प्रमाण तीन लाख सोलह हजार सात सौ एक योजन और एक सौ सैंतालीस भाग अधिक है ॥ १७१ ।। ३१६४७१४३ + २३०४३३ = ३१६७०१४३७ । . चन्द्रके नौवें मार्ग में वह परिधि तीन लाख सोलह हजार नौ सौ इकतीस योजन और . दो सौ नब्बै कलाप्रमाण है ॥ १७२ ॥ ___ ३१६७०११५७ + २३०१५ ३ = ३१६९३१३१७ । चन्द्रकी दशवीं वीथीकी परिधि तीन लाख सत्तरह हजार एक सौ बासठ योजन और छह कलामात्र है ॥ १७३ ॥ ३१६९३१३३० + २३०४५३ = ३१७१६२.६ । ग्यारहवें पथमें वह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार तीन सौ बानबै योजन और एक सौ उनचास भागप्रमाण है ॥ १७४ ॥ ३१७१६२४६. + २३० १५३ = ३१७३९२१५: । १६ एकतीसा. २ष सतरसहस्स. ३द ब सरसहस्स". Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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