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-७. १०९] सत्तमो महाधियारो
[६७१ ताणिं णयरतलाणिं जहजोग्गुहिवासबहलागि । उत्ताणगोलगरोवमाणि बहुरयणमझ्याणि ॥ १०२ ॥ सेसाओ वण्णणाभो घुबिल्लपुराण होंति सरिसाओ । किं पारेमि भणेदुं' जीहाए एक्कमेत्ताए ॥ १०३ ॥ भट्ठसयजीयणाणि चउसीदिजुदाणि उवरि चितादो । गंतूण गयणमग्गे हुवंति णक्खत्तणयराणि || १०४ ॥
८८४। ताणिं णयरितलाणि बहुरयणमयाणि मंदकिरणागि । उत्तागगोलगद्धोवमाणि रम्माणि रेहति ॥ १०५ ॥ उवरिमतलवित्थारो ताणं कोसो तदद्धबहलाणि । सेसाओ वण्णणाओ दिणयरणयराण सरिसाओ॥ १०६ णवरि विसेसो देवा अभियोगा सीहहत्थिवसहस्सा । ते एक्केक्कसहस्सा पुवदिसासु ताणि धारंति ॥ १०७ ण उदिजुदसत्तजोयणसदाणि गंतूण उवरि चित्तादो। गयणयले ताराणं पुराणि बहले दहुत्तरसदम्मि ॥ १०८ ताणं पुराणि णाणावररयणमयागि मंदाकिरणाणिं। उत्ताणगोलगद्धोवमाणि पासाद दोसहसदंडा (?)||१०९
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ये नगरतल यथायोग्य कहे हुए विस्तार व बाहल्यसे सहित, ऊर्ध्वमुख गोलकार्धके सदृश, और बहुतसे रत्नोंसे रचित हैं ॥ १०२ ॥
इनका शेप वर्णन पूर्वोक्त पुरोंके सदृश है । एकमात्र जिह्वासे इनका विशेप कथन करते हुए क्या पार पा सकता हूं? ॥ १०३ ॥
चित्रा पृथिवीसे आठसौ चौरासी योजन ऊपर जाकर आकाशमार्गमें नक्षत्रोंके नगर हैं ॥ १०४ ॥ ८८४ ।
वे सब रमणीय नगरतल बहुतसे रत्नोंसे निर्मित, मन्द किरणोंसे संयुक्त, और ऊर्ध्वमुख गोलकार्धके सदृश होते हुए विराजमान होते हैं ॥ १०५ ॥
उनके उपरिम तलका विस्तार एक कोश और बाहल्य इससे आधा है। इनका शेष वर्णन सूर्यनगरोंके सदृश है ॥ १०६॥
इतना विशेष है कि सिंह, हाथी, बैल एवं घोड़ेके आकारको धारण करनेवाले जो चार हजार आभियोग्य देव हैं वे एक एक हजार प्रमाण क्रमसे पूर्वादिक दिशाओंमें उन नगरोंको धारण किया करते हैं । १०७ ॥
चित्रा पृथिवीसे सात सौ नब्बै योजन ऊपर जाकर आकाशतलमें एकसौ दश योजनमात्र बाहल्यमें ताराओंके नगर हैं ॥ १०८ ॥
उन ताराओंके पुर नाना प्रकारके उत्तम रत्नोंसे निर्मित, मन्द किरणोंसे संयुक्त और ऊर्ध्वमुख गोलकार्धके सदृश हैं । इनमें स्थित प्रासाद............( ? ) ॥ १०९ ॥
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१ द ब पावेदि भणामो.
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