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सत्तमा महाधियारी तम्मज्झे वरकूडा हुवति तेसुं जिणिंदपासादा । कूडाण समतेणं बुहणिलया पुटवसरिसवण्णणया ॥ ८७ दोदो सहस्समेत्ता अभियोगा हरिकरिंदवसहहया । पुवादिसु पत्तेकं कगयणिहा बुहपुराणि धारंति.॥ ८८ चित्तोवरिमतलादो णवऊणियणवसयाणि जोयणए । गंतूण हे उवरि सुक्काण पुराणि चेट्ठति ॥ ८९
८९१ । ताणं णयरतलाणं पणसयदुसहस्समेत्तकिरणाणि । उत्ताणगोलयद्धोवमाणि वररुप्पमइयाणि ॥ ९०
२५०० । उवरिमतलविक्खंभो कोसपमाणं तदद्धबहलत्तं । ताणं अकिहिमाणं खचिदाणं विविहरयणेहिं ॥९१
को १ । को ११
पुह पुह तागं परिही तिकोसमेत्ता हुवेदि सविसेसा। सेसाओ वणणाओ बुहणयराणं सरिच्छाओ॥ ९२ चित्तोवरिगतलादो छक्कोणियणवस एण जोयगए । गंतूण णहे उवरि चेटुंति गुरूण जयराण ॥ ९३
८९४ ॥
राजांगणके मध्यमें उत्तम कूट और उन कूटोंपर जिनेन्द्रप्रासाद होते हैं । कूटोंके चारों ओर पूर्व भवनोंके समान वर्णनवाले बुधके भवन हैं ॥ ८७ ॥
बुधके सिंह, हाथी, बैल एवं घोड़ेके रूपको धारण करनेवाले और सुवर्ण जैसे वर्णसे संयुक्त दो दो हजार मात्र आभियोग्य देव क्रमसे पूर्वादिक दिशाओं से प्रत्येकमें बुधोंके पुरोको धारण करते हैं ॥ ८८ ॥
चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे नौ कम नौ सौ योजन ऊपर जाकर आकाशमें शुक्रोके पुर स्थित हैं ॥ ८९ ॥ ८९१ ।
ऊर्ध्व अवस्थित गोलकार्धके सदृश और उत्तम चांदीसे निर्मित उन नगरतलोंकी दो हजार पांचसौ किरणें होती हैं ।। ९० ॥ २५०० ।
विविध प्रकारके रत्नोंसे खचित उन अकृत्रिम पुरोंके उपरिम तलका विस्तार एक कोशप्रमाण और इससे आधा बाहल्य है ॥ ९१ ॥ को. १ । को. ३ ।
उनकी परिधि पृथक् पृथक् तीन कोशमात्रसे अधिक है । इन नगरोंका बाकी सब वर्णन बुधनगरोंके सदृश है ॥ २२ ॥
चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे छह कम नौ सौ योजन ऊपर जाकर आकाशमें गुरुओंके (बृहस्पतिके ) नगर स्थित हैं ॥ ९३ ॥ ८९४ ।
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