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तिलोय पण्णत्ती
दुगसत्तचउक्काई एक्कारसठाणएसु सुष्णाई । णवसत्तछहुगा अंकाण कमेण एदेणं ॥ ३३ संगुणिदेहिं संखेज्जरूपदरंगुलेहिं भजिदव्वो । सेढीवग्गो तत्तो पणसत्तत्तियचउक्कट्ठा ॥ ३४ अपंचणवदुगअट्ठासत्तणवचउक्काणिं । अंककमे गुणिदच्वो परिसंखा सच्चताराराणं ॥ ३५
= ४९८७८२९५८९८४३७५
४। १ । २६७९०००००००००००४७२ |
| संखा सम्मत्ता |
सीदिजु असा जोयणाणि चित्ताए । उवरिम्मि मंडलाई चंदाणं होंति गयणम्मि ॥ ३६
| ८८० ।
उत्ताणावद्विगोलग सरिसाणि ससिमणिमयाणिं । ताणं पुह पुद्द बारससह स्ससिसिर यर मंद किरणाणिं ॥ ३७ ते द्विदपुढ विजीवा जुत्ता उज्जोवकम्म उदए । जम्दा तम्हा ताणिं फुरंतसिसिरयरमंद किरणाणिं ॥ ३८
दो, सात, चार, ग्यारह स्थानों में शून्य, नौ, सात, छह और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे गुणित संख्यात रूप प्रतरांगुलोंका जगश्रेणी के वर्ग में भाग देने पर जो लब्ध आवे उसको पांच, सात, तीन, चार, आठ, नौ, आठ, पांच, नौ, दो, आठ, सात, आठ, नौ और चार, इन अंकोंसे गुणा करनेपर सब ताराओंकी संख्या होती है
॥ ३३-३५ ॥
[ ७.३३
ज. . = (सं. प्र. अं x २६७९०००००००००००४७२ ) × ४९८७८२९५८९८४३७५.
इस प्रकार संख्याका कथन समाप्त हुआ ।
चित्रा पृथिवीसे ऊपर आठसौ अस्सी योजन जाकर आकाश में चन्द्रोंके मण्डल हैं ।। ३६ ।। ८८० ।
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उत्तान अर्थात् ऊर्ध्वमुख रूप से अवस्थित अर्ध गोलक के सदृश चन्द्रोंके मणिमय विमान हैं । उनकी पृथक् पृथक् अतिशय शीतल एवं मन्द किरणें बारह हजार प्रमाण हैं ॥ ३७ ॥ उनमें स्थित पृथिवी जीव चूंकि उद्योत नामकर्मके उदयसे संयुक्त हैं, इसीलिये वे प्रकाशमान अतिशय शीतल मन्द किरणोंसे संयुक्त होते हैं ॥ ३८ ॥
१ द ब गोलगकर .
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