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________________ -६.८९] छ8। महाधियारों । ६५३ दस वाससहस्साणि आऊ णीचोपवाददेवाणं । तत्तो जाव यसीदिं तेत्तियमेत्ताए बड्डीए ॥ ८५ अह चुलसीदी पलट्ठमंसपादं कमेण' पल्लद्धं । दिवासिप्पहुदीणं भणिदं आउस्स परिमाणं ॥ ८६ १०.००।२००००।३००००। ४००००। ५००००। ६००००। ७००००। ।आउपमाणा समत्ता। दिव्वं अमयोहारं मणेण भुजंति किंगरप्पमुहा । देवा देवीओ तहा तेसु कबलासणं णस्थि ॥ ८७ पल्लाउजुदे देवे कालो असणस्त पंच दिवसाणि । दोणि श्चिय णादब्यो दसवाससहस्सआउम्मि ॥ ८८ । आहारपरूवणा सम्मत्ता । पलिदावमाउजुत्तो पंचमुहुत्तेहिं एदि उस्सासो । सो अजु दाउ जुदे वेंतरदेवम्नि अ सत्त पाणेहिं ॥ ८९ । उस्सासपरूवणा सम्मत्ता । नीचोपपाद देवोंकी आयु दश हजार वर्ष है । इसके आगे दिग्वासी आदि शेष देवोंकी आयुका प्रमाण क्रमसे अस्सी हजार वर्ष तक इतनी मात्र अर्थात् दश हजार वर्षोंकी वृद्धिसे. पश्चात् चौरासी हजार वर्ष, पल्यका आठवां भाग, पल्यका एक पाद, और अर्ध पल्यप्रमाण कहा गया है ॥ ८५-८६ ॥ नीचोपपाद वर्ष १०००० । दिग्वासी २०००० । अन्तरनिवासी ३००००। कूष्माण्ड ४०००० । उत्पन्न ५००००। अनुत्पन्न ६०००० । प्रमाणक ७०००० । गन्ध ८०००० । महागन्ध ८४००० । भुजंग पल्य है। प्रीतिक १ । आकाशोत्पन्न । आयुका प्रमाण समाप्त हुआ। किन्नर आदि व्यन्तर देव तथा देवियां दिव्य एवं अमृतमय आहारका मनसे ही उपभोग करती हैं, उनके कवलाहार नहीं है ॥ ८७ ॥ पल्यप्रमाण आयुसे युक्त देवोंके आहारका काल पांच दिन, और दश हजार वर्षप्रमाण आयुवाले देवोंके आहारका काल दो दिनमात्र जानना चाहिये ॥ ८८ ॥ आहारग्ररूपणा समाप्त हुई। व्यन्तर देवोंमें जो पल्यप्रमाण आयुसे युक्त हैं वे पांच मुहुत्तोंमें, और जो दश हजार वर्षप्रमाण आयुसे संयुक्त हैं वे सात प्राणोंमें ( उच्छ्वास-निश्वासपरिमित कालविशेष ) ही उच्छ्वासको प्राप्त करते हैं ॥ ८९॥ उच्छ्वासप्ररूपणा समाप्त हुई । १ द ब पादकमेण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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