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________________ 4421 ताणं विष्णासवसंदिट्ठी २०००. २०००. २००० Jain Education International उनकी विन्यासरूप संदृष्टि- क्रम संख्या १२ ११ १० २००० । दक्खिण- उत्तरइंदाणं परूवणां सम्मत्ता । उक्कस्साऊ पलं होदि असंखो य मज्झिमो आऊ । दस वाससहस्साणिं भोमसुराणं जहण्णाऊ ॥ ८३ ९ ८ प १ | a' | १००० । इंदपदिसमाणय पत्ते एक्कमेकपलाऊ । गणिकामहल्लियाणं पलद्धं सेसयाण जहाजोगं ॥ ८४ 19 तिलोय पण्णी ६ २००० ५ ४ ३ २ ० अन्तर २०००० ह. २०००० ह. २०००० ह. २०००० ह. २०००० ह. २०००० ह्. २०००० ह. २०००० ह. १०००० ह. १०००० ह. दिग्वासी १०००० ह. नीचोपपाद १ हस्त इस प्रकार दक्षिण-उत्तर इन्द्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई । देव आकाशोत्पन्न प्रीतिक भुजंग महागन्ध गन्ध प्रमाणक अनुत्पन्न उत्पन्न [ ६.८३ कूष्माण्ड अन्तरनिवासी व्यन्तर देवोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्यप्रमाण, मध्यम आयु असंख्यात वर्ष, और जघन्य आयु दश हजार वर्षमात्र है ॥ ८३ ॥ प. ९ । असंख्यात । १०००० । इन्द्र, प्रतीन्द्र व सामानिक देवोंमेंसे प्रत्येककी आयु एक एक पल्यप्रमाण, गणिकामहत्तरियोंकी अर्ध पल्य, और शेष देवोंकी आयु यथायोग्य है ॥ ८४ ॥ १ द ब उ. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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