SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -६. २३ ] छट्टो महाधियारो एदे कुलदेवा इय मण्णंता देवबोहणबलेण । मिच्छाइट्ठी देवा पूयंति' जिणिदपडिमाओ ॥ १७ एदाणं कूडाणं समंतदो वेंतरण पासादा । सत्तट्ठपहुदिभूमी विण्णासविचित्तसंठाणा ॥ १८ लंबंतरयणमाला वरतोरणरहदसुंदरदुवारा । णिम्मलविचित्तमणिमयसयणासणणिवहपरिपुण्णा ॥ १९ एवंविहरूवागिं तीससहस्साणि होति भवगाणि । पुम्वोदिदभवणामरभवणसमं वण्णणं सबलं ॥ २० ।भवणा समत्ता। वहादिसरूवाणं भवण पुराणं हुवेदि जेहाणं । एक्कावणलक्खाण जायणमेकं जहण्णाण ॥२. ५६००००० जो।। कूडा जिर्णिदभवणा पासादा वेदिया वणप्पहुदी । भवणसरिच्छं सम्वं भवणपुरेसुं पि दट्टब्वं ॥ २३ । भवणपुर । बारससहस्सबेसयजोयणवासा य अमावासा । होति जहण्णावासा तिकोसपरिमाणवित्थारा . . १२२०० । को । अन्य देवोंके उपदेशवश मिथ्यादृष्टि देव भी 'ये कुलदेवता हैं ' ऐसा समझकर उन जिनेन्द्रप्रतिमाओंकी पूजा करते हैं ॥ १७ ॥ इन कूटों के चारों ओर सात आठ आदि भूमियोंके विन्यास और विचित्र आकृतियोंसे सहित व्यन्तरोंके प्रासाद हैं ॥ १८ ॥ ये प्रासाद लम्बायमान रत्नमालाओंसे सहित, उत्तम तोरणोंसे रचित सुन्दर द्वारोंवाले, और निर्मल एवं विचित्र मणिमय शयनों तथा आसनोंके समूहसे परिपूर्ण हैं ॥ १९॥ इस प्रकारके स्वरूपवाले ये प्रासाद तीस हजार प्रमाण हैं। इनका सम्पूर्ण वर्णन पूर्वमें कहे हुए भवनवासी देवोंके भवनोंके समान है ॥ २० ॥ भवनोंका वर्णन समाप्त हुआ। वृत्त इत्यादि स्वरूपसे संयुक्त उत्कृष्ट भवनपुरोंका विस्तार इक्यावन लाख योजन और जघन्य भवनपुरोंका विस्तार एक योजनमात्र है ॥ २१ ॥ यो. ५१००००० । १ । कूट, जिनेन्द्रभवन, प्रासाद, वेदिका और वन आदि सब भवनोंके सदृश भवनपुरोंमें भी जानना चाहिये ।। २२ ॥ भवनपुरोंका वर्णन समाप्त हुआ । उत्कृष्ट आवास बारह हजार दो सौ योजनप्रमाण विस्तारवाले और जघन्य आवास तीन कोश प्रमाण विस्तारवाले हैं ॥ २३ ॥ १५ पूजति. २६ बड़ादि. ३ 'एक्कावण लक्खाणं ' इति व पुस्तके मास्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy