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________________ -५. ३२० ] पंचम महाधिवा [ ६३९ तदो पदेसुतस्कमेण दोन्हं मज्झिमोगाहणवियष्यं वचादे तहत रोगाहणं संखेगुं पतोति । तावे बादरवणप्फटिकाइयपत्तेयसरीरणिग्वत्तिपात्तयस्स उस्सोगाहणं दीसह । कमिह खेते कस्स वि जीवस्स कम्मि भोगाहगे बडूमाणस्स होदि ति भणिदे सर्वपाचपरभागट्टियस उपरण- [ पडमस्स ] उक्करसोगाहणा कस्स दीसह । तं केत्तिया इदि उसे उस्सेहजोषण कोसाहियएकसहस्वं उस्सेहं एकजोयणबहलं समवहं । तं पमाणं जोयणफल ७५० को १ । बगुले क दोष्णकमल एकदत रिस हरसभट्टसयभट्टावरणकोटि- घरासीविलक्ख-ऊणइस रिसहस्स- दुसष- मट्टताहरू बेटि गुदपमा गुलाणि होदि । तं चेदं ॥ १ । ६ । २७१८५८८४६९२४८ ॥ तदो पत्तरकमेण पंचेंवियम्विसिपजतयस्स मज्झिमोगाहणवियप्पं बञ्चदि तदनंतरोगाहणं संजगुणं पत्तो सि । [ताचे पंचेंद्रिय णिव्वसिपज तयस्स उक्करसोगाहणं दीसइ ।] तं कम्मि खेते कस्स पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनंतर अवगाहनाके संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । किस क्षेत्र और कौनसी अवगाहनामें वर्तमान किस जीवके यह उत्कृष्ट अवगाहना होती है, इस प्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयंप्रभाचलके बाह्य भागस्थित क्षेत्र में उत्पन्न किसी [ पद्मके ] उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । वह कितने प्रमाण है, इस प्रकार पूछनेपर उत्तर देते हैं कि उत्सेध योजनसे एक कोश अधिक एक हजार योजन ऊंचा और एक योजन मोटा समवृत्त कमल है । उसकी इस अवगाहनाका घनफल योजनों में सातसौ पचास योजन और एक कोशप्रमाण है । इसके प्रमाणघनांगुल करनेपर दो लाख इकहत्तर हजार आठ सौ अट्ठावन करोड़ चौरासी लाख उनहत्तर हजार दो सौ अड़तालीस रूपों से गुणित प्रमाणघनांगुल होते हैं । उदाहरण --- पद्मकी उंचाई यो. १०००; बाहल्य यो. १ । खेत्तफलं । वास तिगुणो परिही वासच उत्थाहदो दु खेत्तफलं वह गुणं खातफलं होइ सव्वत्थ || इस सूत्र के अनुसार व्यास यो. १४३ = ३ ३ = यो क्षेत्रफल | १००० = ७५० यो. खातफल ( घनफल ) । ७५०÷×३६२३८७८६५६=२७१८५८८४६९२४८ प्रमाण घनांगुल | पश्चात् प्रदेशेोत्तरक्रमसे पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता है । तत्र पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । ] यह अवगाहना किस क्षेत्रमें और किस जविके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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