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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना
१ ग्रंथ-परिचय तिलोयपण्णत्ति (त्रिलोकप्रज्ञप्ति ) भारतीय साहित्यका एक प्राचीन ग्रंथ है । इसकी रचना प्राकृत भाषामें हुई है और इसका विषय मुख्यतः विश्वरचना-लोकस्वरूप है, तथा प्रसंगवश उसमें धर्म व संस्कृतिसे संबंध रखनेवाली अनेक अन्य बातोंकी भी चर्चा आई है । ग्रंथकर्ताके वचनानुसार समस्त ग्रंथ नौ महाधिकारोंमें विभाजित है (१,८८-८९ ) जो निम्न प्रकार हैं
. (१) सामान्य लोकका स्वरूप, (२) नारकलोक, (३) भवनवासीलोक, (४) मनुष्यलोक, (५) तिर्यग्लोक, (६) व्यन्तरलोक, (७) ज्योतिर्लोक, (८) देवलोक और (९) सिद्धलोक ।
ग्रंथकी रूप-रेखा बड़ी सुव्यवस्थित है। प्रत्येक महाधिकारके अन्तर्गत अनेक अधिकार हैं जिनमें भिन्न भिन्न विषयोंका वर्णन किया गया है। कहीं कहीं इन अधिकारों के भी अवान्तर अधिकार निरूपण किये गये हैं । और कहीं गाथाओंमें वर्णित विषयका संख्यात्मक विवरण दे दिया गया है । ग्रंथकी अधिकांश रचना पद्यात्मक है। किन्तु कुछ गद्यखण्ड भी आगये हैं म कहीं कहीं गाथाओंकी प्रस्तावनारूप स्फुट शब्द व वाक्य भी पाये जाते हैं।
प्रथम महाधिकारके दो प्रमुख विभाग हैं- प्रस्तावना व विश्वका सामान्य निरूपण । इसमें कुल २८३ गाथायें और कुछ गद्यखंड हैं । दूसरे महाधिकारमें १५ अधिकार हैं (२,२-५) जिनमें कुल ३६७ पद्य पाये जाते हैं । इनमें ४ इन्द्रवज्रा (३६२, ३६४-६६ ) और १ स्वागता ( ३६३ ) को छोड़ शेष सब पद्य गाथा छंदमें हैं । तीसरे महाधिकार २४ अधिकार (३,२-६) व २४३ पद्य हैं जिनमें २ इन्द्रवज्रा (२२८ व २४१), ४ उपजाति (२१४-१५, २२९५ २४२) और शेष गाथाबद्ध हैं। चौथे महाधिकारमें १६ अधिकार हैं (४,२-५) और कुछ अधिकारोंमें अवान्तर अधिकार भी हैं। कुल पद्योंकी संख्या २९६१ है। कुछ गद्यखंड भी हैं । पद्योंमें ७ इन्द्रवज्रा (१६२-६३, ५५०-५१, ५७८, ९४१-४२), २ दोधक (५५२ व १२७५ ), १ शार्दूलविक्रीडित ( ७०४), २ वसन्ततिलका (९४० व १२११ ) और शेष गाथा छंदमें हैं । पांचवें महाधिकारमें १६ अधिकार (५,२-४), ३२१ गाथायें व अनेक गद्यखंड हैं । छठे महाधिकारमें १७ अधिकार हैं (६,२-४) जिनमें अन्तिम तीन अधिकार महाधिकार ३ के अधिकारोंके समान हैं । इसकी गाथासंख्या १०३ है। सातवें महाधिकारमें १७ अधिकार हैं (७, २-४ ) जिनमें अन्तिम नौ तीसरे महाधिकारके समान हैं । इसकी गाथासंख्या ६१९ है व कुछ गद्यखंड भी हैं। आठवें महाधिकारमें २१ अधिकार (८,२-५) हैं इनमेंसे कुछका
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