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________________ -५.३१८ ] पंचमी महाधिवारी [ ६१५ ara ear गुणगाररूवं विश्वारेमो - बादरवणप्फत्रिका इयत्तेयसरीरणिच्वत्तिय पंजत्तयस्स अण्णागाहणपदि बीइंदियणिव्यत्तिपज्जतजहण्णोगाहणमवसाणं जाब एदम्मि अंतराले' जादाणं सवाणं मिलिदे किचिया इदि उत्ते बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरणिन्वत्ति पज्जतयस्स जहण्णोगाद्दणं रूऊणपलिदोषमस्स भसंखेज्जदिभागेण गुणिमेतं तदुपरि वडिदो ति घेशवं । वड़ो पवेसुत्तरकमेण सतहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वयदि सदणंतरोगाहणं तप्पाउग्गसंखेज्जगुणं पत्तो ति I ताधे ती इंद्रियणिन्वत्तिपज्जतयस्स सब्वजहण्णोगाहणा दीसह । तो प्रदेसुत्तरकमेण भट्ठण्हं भगाहणवियप्पं वश्चदि तदणंतरोगाहणवियप्पं तप्पाउग्गसंखेज्जगुणं पतोति । ताचे चउरिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयरस जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण raj ममोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेज्जगुणं पत्तो त्ति । ताधे पंचेंदिय णिग्वतिपज्जतयस्स जहण्णोगाइणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण दसहं मज्झिमोगा हणवियप्पं वञ्चदि तदणंवरो १० गाहणं संजगुणं पत्तो ति । ताघे तीदियणिव्यत्तिअपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरमेण णवं मज्झिमोगाहणवियष्पं वञ्चदि तदणंतरोगाहणं संखेज्जगुणं पत्तो ति । ताँधे अब इनकी गुणकार संख्याका विचार करते हैं - वादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वत्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको लेकर दोइन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना तक इनके अन्तराळ में उत्पन्न सबके सम्मिलित करनेपर 'कितनी हैं' इस प्रकार पूछने पर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वृत्तिपर्याप्तककी जवन्य अवगाहनाको एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतनी इसके ऊपर वृद्धि होती है, इस प्रकार ग्रहण करना चाहिये । पश्चात् प्रदेशोत्तरमक्रमसे सात जीवों की मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना उसके योग्य संख्यातगुणी प्राप्त न हो जाये । तब तीनइन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाविकल्प उसके योग्य संख्यातगुणा प्राप्त न हो जावे । तत्र चारइन्द्रिय निर्वृत्तिपर्यातककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चालू रहता है । तब पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशस्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है। तत्र तीनइन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्वात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी १ द व अंतराको. २ द व पज्जतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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