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________________ ६३५] तिलोयपणती पबेसुप्तरकमेण तिण्डं मझिमोगाहणवियप्पं बच्चदि तप्पाउग्गअसंखेज्जपदेसं वधियों सि । ताथै पंचिंवियलद्धिभपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसइ । एवमवि धणंगुलस्स असंखेजधिभागेण । एसो उचार भोगाहणा घणंगुलस्स संखेजभागो, करथ वि घणंगुलो, कस्थ वि संखेजधणंगुलो ति घेत्तन्छ । तदो पदेसुप्सरकमेण वोहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि तप्पाउग्गभसंखेजपदेसं वदि दो ति । ताधे तीइंदियणिन्वत्तिभपजत्तयस्त जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण तिहं मझिमो- ५ गाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गमसंखेज्जपदेसं वडिदो त्ति | ताधे बउरिंदियणिव्यत्तिभपज्जत्तयस्स जहष्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण चउण्ह मग्झिमोगाहणवियप्पं वश्चदि तप्पाउग्गसंखेजपदेसं पडिदो त्ति । ताधे यीइंदियणिन्वत्तियपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण पंचण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेस वडिदो त्ति । ताधे पंचेदियणिव्वत्तिअपजसयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण छपणं मज्झिमोगाहणवियप्पं बच्चदि तप्पाउग्गअसंखोजपदेसं १० बडिदो ति । ताधे बोइंदियणिन्चत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ । मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चालू रहता है। तब पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। यह भी घनांगुलके असंख्यातवें भागसे है। इससे आगे अवगाहना धनांगुलके संख्यातवें भाग, कहींपर घनांगुलप्रमाण, और कहींपर संख्यात घनांगुलप्रमाण ग्रहण करना चाहिये । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है । तब तीनइन्द्रिय निर्वत्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे तीन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है । तब चारइन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाड्ना दिखती है | पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब दोइन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे पांच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है । तब पंचेन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है। तब दोइन्द्रिय निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है। १द ब पदेस संबडिदो. २द व असंखेयदिमागेण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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