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________________ - ५. ३१८ ] पंचमो महाधियारो [ ६२३ | - जाव इमा ओगाहणा आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंड मे तदुवरि वडिदो ति । ता सुमनिगोदणिग्वन्तिपत्तयस्स ओगाहणवियप्पं थक्कदि, सन्वउक्कस्लोग्ग हणपत्तत्तादो । तदो पदेसुत्तरेकमेण पण्णारसदं मज्झिमोगाद्दणवियप्पं वञ्चदि तप्पा उग्गअसंखेज्जपदेसं वड्ढिदो त्ति । ताधे सुहुमवाउकाइयणिष्यत्ति अपजत्तयस्स सब्वजहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तर [कमेण] सोलहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसवडिदो त्ति । ताधे सुहुमवाउकाइयलद्धिअपजत्तयस्स ओगाहगवियप्पं थक्कदि, समुक्कस्लोगाणं पतं। ताधे पदेसुत्तरकमेण पण्णारसं व मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि। केत्तियमेत्तेण ? सुहुमणिगोदणिव्वत्तिपजत्तस्स उक्करसोगाहणं रुजणावलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेतं हेट्ठिम तप्पाउग्गभसंखेज्जपदेसेणूणं तदुवरि वड्ढिदो सि । ताधे सुहुमबाउकायणिव्यत्तिपजत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण सोलसह ओगाहणवियपं वच्चदि इमा ओगाहणा आवलियाए असंखेजदिभागेण खंडिदेगखंडं वडिदो त्ति । ताधे सुहुमवाउकाइयणिव्यत्ति अपत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण पणारसं मज्झिमोगाहणवियष्पं वच्चदि तदनंतरोगाहणा आवलियाए असंखेजदिभागेण खंडिदेगखंडं तदुवरि वड्डिदो ति । ताधे सुदुमवाउकाइयणिन्वत्तिपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा होदि । तो पदेसुत्तरकमेण चौदसन्हं ओगाहणवियप्पं वञ्चदि तप्पाउग्ग असंखेज्जपदेसं वड्ढिदो ति । ताधे सुहुमतेउ पर्याप्तककी अवगाहनाका विकल्प स्थगित होजाता है, क्योंकि यह सर्वोत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त हो चुका है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है । तदनन्तर सूक्ष्म वायुकायिक निर्वृत्यपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक सोलह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है । तब सूक्ष्म वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी अवगाहनाका विकल्प स्थगित होजाता है, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको पा चुका है। तत्र प्रदेशोत्तरक्रमसे पन्द्रह जीवोंके समान मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है । कितने मात्रसे ? सूक्ष्म निगोद निर्वृतिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम आवली असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र अवस्तन उसके योग्य असंख्यात प्रदेश कम उसके ऊपर वृद्धि होने तक । तब सूक्ष्म वायुकायिक निर्वृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे सोलह जीवोंकी अवगाहनाका विकल्प तत्र तक चालू रहता है जब तक ये अवगाहनायें आवली के असंख्यातवें भागसे खंडित एक भागप्रमाण वृद्धिको प्राप्त न होजांय । उस समय सूक्ष्म वायुकायिक निर्वृत्तिअपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनंतर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक खण्डप्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । उस समय सूक्ष्म वायुकायिक निर्वृतिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना होती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे चौदह जीवोंकी अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक बढ़ता जाता है । उस समय सूक्ष्म १ द ब गाहणं पत्तं तदो पदेसुत्तर. २ द ब संओगाहणं.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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