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________________ तिलोयपण्णत्ती ६२२ ] [ ५.३१८ पदेसयढिदो त्ति । तदो सुहुमणिगोदणिव्वत्तिअपजत्तयस्स सब्वजहण्णा भोगाइणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तारसहं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं होदि जाव तप्पा उग्गअसंखेज्जपदेसं वढदो ति । सुहुमणिगोदलद्धि अपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसह । तदुवरि णत्थि सुहुमणिगोदलद्धिअपज्जत्तस्स य ओगाहणवियप्पं, सन्युकरसोगाहणंपत्तत्तादो' । तदुवरिं सुहुमवाउकाइयलद्धि अपज्जत्तयप्प हुदिसोलसहं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियपं वच्चदि, तप्पा उग्गअसंखेजपदेसणूण पंचेंद्रिय लद्विपज्जतजहण्णोगाहणा रूऊगावलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदमेत्तं तदुवरि वड्ढिदो ति । ताधे सुहुमणिगोदणिव्वतिपज्जतयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । तो पहुदि पदेसुतरक मेग सतरसहं मज्झिमोगाहणवियपं वडुदि तद्गंतरोगाहणा यावलियाए असंखेजदिभागेण खंडिदेगभागमेत्तं तदुवरि बढिदो त्ति । तावे सुहुमणिगोदव्वित्तिअपजत्तयस्स उक्कस्पोगाहणा दीसह । तदो उवरि णत्थि तस्स ओगाहणवियथा । तं कस्स होदि ? से काले पज्जत्तो होदि त्ति ठिदस्य । तदो पहुदि पदेसुत्तरकमेण सोलस हं मज्झिमेो गाहाविय व १० प्राप्त होती है | पश्चात् सूक्ष्म निगोद निर्वृत्यर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उक्त सत्तरह जीवों की मध्यम अवगाहनाका विकल्प होता है जब तक कि इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होजाती है । तब सूक्ष्म निगोद लव्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इसके ऊपर सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकी अवगाहनाका विकल्प नहीं रहता, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त होचुका है । इसलिये इसके आगे सूक्ष्म वायुकायिक लव्ल्यपर्याप्तकको आदि लेकर उक्त सोलह जीवोंकी ही मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है जब तक कि इसके योग्य असंख्यात प्रदेश कम पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना एक कम आवली के असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होजावे । तब सूक्ष्म निगोद निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । फिर यहांसे आगे प्रदेशोत्तरक्रमसे तदनन्तर अवगाहना के आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित एक भागमात्र इसके ऊपर बढ़ जाने तक उक्त सत्तरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है । तब सूक्ष्म निगोद निर्वृत्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इसके आगे उस सूक्ष्म निगोद निर्वृत्यपर्याप्त अवगाहना के विकल्प नहीं रहते । यह अवगाहना किसके होती है ? अनन्तर कालमें पर्याप्त होनेवाले के उक्त अवगाहना होती है । यहांसे आगे प्रदेशोत्तरक्रमसे अवगाहनाके आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित एक भागमात्र उसके ऊपर बढ़ जाने तक उक्त सोलह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है । इस समय सूक्ष्म निगोद निर्वृत्ति १ द ब गहिद. २ द ब गाहणं पतादो. ३ द ब तदा. Jain Education International For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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