SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२०] तिलोयपण्णत्ती [ ५. ३१८तत्ता उरि पदेसुत्तरकमेण छण्णं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं वदि जाव इमा ओगाइणा रूऊणपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ] गुणिदमेत्तं वडिदो त्ति । ताधे बादरतेउकाइयअपज्जत्तस्स सम्वजहण्णीगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहणावियप्पं वदि जाव इमा ओगाहणामुवरि रूऊणपलिदोवमस्स असंखज्जदिभागेण गुणिदतदणंतरोगाहणपमाणं वड्डिदो त्ति । ताधे बादरमाउलद्धियपन्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण अट्टण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण- ५ वियप्पं वहदि जाव तदणंतरोवगाहणा रूऊणपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं तदुवरि वद्भिदो त्ति । ताधे बादरपुढविलद्धिअपज्जत्तयस्स जहरणोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण णवण्हं जीवाण मजिसमोगाहणवियप्पं वदि जाव तदणंतरोगाहणा रूऊणपलिदोबमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरणिगोदजीवलद्धियपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णोगाहणा होदि । तदो पदेसुत्तरकमेण दसण्हं जीवाण मज्झिमोगाणावियप्पं वदि एदिस्से ओगाहणाए उवरि इमा ओगाहणा रूऊगपलिदोमस्स .. असंखज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं वडिदो त्ति । ताधे णिगोदपदिदिलद्रियपजत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण एकारसजीवाण मज्झिमोगाहणवियप्पं वदि जाव इमा ओगाहणामुघरि ऊपर प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चालू रहता है जब तक कि यह अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यात भागसे ] गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त होजावे । तब बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चालू रहता है जब तक कि इस अवगाहनाके ऊपर एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित उस अनन्तर अवगाहनाका प्रमाण बढ़ चुकता है। तब बादर जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चालू रहता है जब तक कि तदनंतर अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो जावे। तब बादर पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जवन्य अवगाहना दिखती है। तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उपर्युक्त नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकस बढ़ता जाता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होजावे । तब बादर निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी सर्वजघन्य अवगाहना होती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उक्त दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है जब तक कि इस अवगाहनाके ऊपर यह अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त हो चुकती है। तब निगोदप्रतिष्ठित लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है। तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे उक्त ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है १दव रूऊणा. २द तादे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy