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________________ -५. ३१८] पंचमी महाधियारो चदुपदेसुत्तरकमेण जाव सुहुमणिगोदलद्धिअपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णोगाहणाणुवरि जहणोगाहणा रूजणावलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदमेत्तं वड्दिा त्ति' । ताधे सुहुमवाउकाइयलद्धिअपजत्तयस्स सम्वजहणो. गाहणा दीसह । एदमवि सुहुमणिगोदलन्द्वि अपज्जत्तयस्स मज्झिमोगाहियाण वियप्पं होदि । तदा इमा भोगाहणा पदेसुत्तरकमेण वडावेदव्या । तदणंतरोगाहणा रूवूणावलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदमेत वडिवो त्ति । ताधे सुहुमते उकाइयलद्विअपज्जत्तस्स सव्वजहण्णोगाहणा दीसइ । एदमवि पुग्विल्लदोणं ५ जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं होदि । पुणो एदस्सुवरिमपदेसुत्तरकमेण इमा ओगाहणा रूऊणावलियाए भसंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं वविदो त्ति । ताधे सुहुमाउक्काइयलद्धिअपज्जत्तयस्स सम्वजहण्णोगाहणा दीसह । एदमवि पुचिल्लतिण्हं जीवाण मज्झिमोगाहणवियप्पं होदि । तदो पदेसुत्तरकमेण चउण्हं जीवाण मज्झिमोगाहणवियप्पं वदि जाव इमा ओगाहणा रूवूणावलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत वडिदो त्ति । ताधे सुहुमपुढविकाइयलन्द्विअपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पहुदि पदेसुत्तर- .. कमेण पंचण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं वदि। इमा ओगाहणा रूऊणपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं वडिदो त्ति ।[ताधे बादरवाउकाइयलद्विअपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णोगाहणा दीसह । प्रदेशोत्तर एवं चार प्रदेशोत्तर क्रमसे सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तकी सर्वजघन्य अवगाहनाके ऊपर, यह जघन्य अवगाहना एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो, उतनी बढ़ जाती है। उस समय सूक्ष्म वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना दिखती है । यह भी सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तककी मध्यम अवगाहनाका विकल्प है । तत्पश्चात् इस अवगाहनाके ऊपर प्रदेशोत्तर क्रससे वृद्धि करना चाहिये । इस प्रकार वृद्धिके होनेपर वह अनन्तर अवगाहना एक कम आवलोके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त हो जाती है । तब सूक्ष्म तेजस्कायिक लब्ध्यपर्याप्तकका सर्वजघन्य अवगाहनास्थान प्राप्त होता है । यह भी पूर्वोक्त दो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका ही विकल्प होता है । पुनः इसके ऊपर प्रदेशोत्तरक्रमसे वृद्धिके होनेपर यह अवगाहना एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त होजाती है । तब सूक्ष्म जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना प्राप्त होती है। यह भी पूर्वोक्त तीन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहना चालू रहती है। जब तक कि यह अवगाहना एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त होजावे । तब सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना प्राप्त होती है । यहांसे लेकर प्रदेशोत्तरक्रमसे पांच जीवोंकी मध्यम अवगाहना चालू रहती है। यह अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र वृद्धिको प्राप्त हो जाती है । [तब बादर वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी सर्वजघन्य अवगाहना दिखती है । इसके १द व गुणिवमेतवडीयो ति. २६ ब लद्धिपज्जत्तयस्स. ३६ बलदपज्जत्यस्स. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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