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________________ -५.२८० ] उत्थपुंजे पक्खि चरिंदियपज्जत्ता होंति । तस्स ट्ठवणा पं = ५८६४ ४/४/६५६१ ५ च = ५८३६ ४|४|६५६१ ५ रासिमवणि सगसगभपज्जत्तरासिपमाणं होदि । तं चेदं पंचमो महाधियारो पं ५ | ५८६४ | =५८३६ | a | ४|४|६५६१ | TP.7 Jain Education International ती = ८४२४ ४|४|६५६१ ५ १ द पुऊतर, व पुत्रतर. पुणो पुबी इंदियादिसामण्णरासिम्मि सगसगपज्ञस बि ५|६१२० । - २ मू. =८४२४ | al ४|४|६५६१ । च ५ । ५८३६ । = ५८६४ | al ४/४/६५६१ | देवरासिसंखेज्जदिभाग भूदतिरिक्ख सण्णिरासिमवणिदे अवसेसा तिरिक्खअसणिपज्जता होंति । तं पुणो 0 १।३ मू. [ ६०९ बि = ६१२० ४/४/६५६१ ५ चेदं पज्जत्त = ५८६४ रिण रा. = ४ । ४ । ६५६१ ४ । ६५५३६ | ५ पुवं अवणिदतिरिक्खसण्णिरासीणं तप्पा उग्गसंखेजरूवेहि खंडिदे तत्थ बहुभाग। तिरिक्खसणिपंचेंदिम पुणो पंचेंद्रियपज्जत्तरासीणं मज्झे देव णेरड्य· मणुसरासि : ती ५ ।८४२४ २ द मणुसरासिदेवरासिंच. = ६१२० | al ४/४/६५६१ । जीवोंका प्रमाण होता है । पुनः शेष एक भागको चौथे पुंजमें मिलादेनेपर चारइन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है | ( इनकी स्थापना मूलमें तथा गो. जी. गाथा १८० की टीका में देखिये ) । For Private & Personal Use Only पुनः पूर्वोक्त दोइन्द्रियादि सामान्य राशिमेंसे अपनी अपनी पर्याप्त राशिको घटा देने पर शेष अपनी अपनी अपर्याप्त राशिका प्रमाण होता है । ( स्थापना मूलमें देखिये ) । पुनः पंचेन्द्रिय पर्याप्त राशियों के बीचमेंसे देव, नारकी, मनुष्य तथा देवराशिके संख्यातवें भागप्रमाण तिर्यंच संज्ञी जीवोंकी राशिको घटा देनेपर शेष तिर्यंच असंज्ञी पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है । पुनः पूर्वमें अपनीत तिर्यंच संज्ञी राशिको अपने योग्य संख्यात रूपोंसे खण्डित करनेपर उसमें से बहुभाग तिर्यंच संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवराशि होती है और ४ / ६५५३६ | ५ ३ द अवसेसं, व अवसेमे. ५ www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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