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________________ ६०६] तिलोयपण्णत्ती [५. २८०Fa= a । ते दो वि रासी पज्जत्त-अपज्जत्तभेदेण दुविहा होति । पुणो पुव्वुत्तंबादरपुढविपज्जत्तरासिमावलियाए असंखज्जदिभागेण खंडिदे बादरणिगोदपदिहिदपज्जत्तरासिपरिमाणं होदि = |तं आवलि- ' पाए असंखेज्जदिभागण भागे हिदे बादरणिगोदअपदिहिदपज्जत्तरासिपरिमाणं होदि | सग सगपज्जत्तरासिं सगसगसामण्णरासिम्मि अवणिदे सगसगअपज्जत्तरसिपरिमाणं होदि । बादरणिगोद. उदाहरण- प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक जीवराशि = असंख्यात लोकप्रमाण अप्रतिष्टित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक जीवराशि = असंख्यात लोकप्रमाण = = a । सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवराशि = असंख्यात लोकप्रमाण अप्रति ष्ठित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक जीवराशि = ( = a = a). ये दोनों ही राशियां पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे दो प्रकार हैं । पुनः पूर्वोक्त बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवराशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर बादर-निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंकी राशिका प्रमाण होता है। उदाहरण- बादर-निगोद-प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीवराशि आवली (= प ९ प ९९ = पृ. का. बा. पर्याप्त जीवराशि में असंख्यात= ( इसमें आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना बादर-निगोदअप्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंकी राशिका प्रमाण होता है। उदाहरण- बादर-निगोद-अप्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीवराशि आवली = बा. नि. प्र. प्र. श. व. कायिक पर्याप्त जीवराशि + असंख्यात ४a = (१. ९ १ )-(१९ ) अपनी अपनी सामान्यराशिमेंसे अपनी अपनी पर्याप्त राशिको घटा देनेपर शेष अपनी अपनी अपर्याप्त राशिका प्रमाण होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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