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________________ - ५.२८० ] पंचमो महाधियारी [ ६०५ होदि १३ = ६ । पुणो साधारणसुहुमरासिं तप्पा ओग्गसंखेजरूवेहि खंडिय तत्थ बहुभागं साधारण ९ ७ सुहुमपज्जत्तपरिमाणं हे दि १३ = ८४ । सेसेगभागं साधारणसुहुमभपज्जत्तरासिपमाणं होदि १३ = ८ | ९ ५ ९ ५ - पुणो पुवमवणिदअसंखेज्जलोगपरिमाणरासी पत्तेयसरीरवणप्फदिजीवपरिमाणं होदि = a = a l तपत्तेयसरी रवण कई दुविहा बादरणिगोदपदिदि- अपदिट्ठिदभेदेण । तत्थ अपदिदिपत्तेयसरीरवणप्फई असंखेज्जलोगपरिमाणं होइ = a | तम्मि असंखेज्जलोगेण गुणिदे बादरणिगोदपदिट्ठिदरासिपरिमाणं होदि उदाहरण- साधारण बादर पर्याप्त वनस्पतिका. जी. रा. = १३ = १ = ('''') ९ ७ साधारण बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवराशि सा. बा. व. का. जीवराशि असंख्यात X Jain Education International x साधारण बा. व. का. जीवराशि असंख्यात अ - -१ १ पुनः साधारण सूक्ष्म राशिको अपने योग्य संख्यात रूपोंसे खण्डित करने पर उसमें से बहुभाग साधारण सूक्ष्म पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है, और शेष एक भाग साधारण सूक्ष्म अपर्याप्त जीवोंकी राशिका प्रमाण होता है । उदाहरण - साधारण सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीवराशि साधारण सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव राशि संख्यात १ संख्यात = ( ( = For Private & Personal Use Only १३ = ६ ९ ७ साधारण सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवराशि सा. सू. व. जीवराशि संख्यात १३ = ८ ९ १३ = ८ ४ ९ ५ पुनः पूर्वमें घटाई गई असंख्यात लोकप्रमाण राशि प्रत्येकशरीर वनस्पति जीवोंका प्रमाण होता है । बादर निगोद जीवोंसे प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित होनेके कारण वे प्रत्येकशरीर वनस्पति जीव दो प्रकार हैं । इनमेंसे अप्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वनस्पति जीव असंख्यात लोकप्रमाण हैं। इस अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति जीवराशिको असंख्यात लोकों से गुणा करनेपर बादर - निगोद प्रतिष्ठित जीवराशिका प्रमाण होता है । ५ ) ५ www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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