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________________ -५. २७२] पंचमो महाधियारो [५८५ रवरदीवस्स खेत्तफलादो वारुणीवरदीवस्स खेत्तफलं सोलसगुणं होऊण सत्तारसलक्ख-भट्ठावीससहस्सकोरिजोयणेहिं अब्भहियं होइ १७२८००००००००००। एवं हेट्ठिमदीवस्स खेत्तफलादो तदणंतरोवरिमदीवस्स खेत्तफलं सोलसगुणं पक्खेवभूदसत्तारसलक्ख-अट्ठावीससहस्सकोडीओ चउग्गुणं होऊण गच्छइ जाव सयंभूरमपदीओ त्ति । एत्थु विक्खंभायामन्तफलाणं अंतिमवियप्पं वत्तइस्सामो-अहिंदवरदीवस्स विक्खंभं रज्जूए बत्तीसमभाग, पुणो णवसहस्स-तिण्णिसय-पंचहत्तरिजोयणेहिं अब्भहियं होइ। भायाम णव रज्जू ठविय बत्तीसरूवेहि भाग घेत्तण पुणो अट्टलक्ख-पण्णारस-सहस्स-छसयपगवीसजोयणेहिं परिवीण होइ । तस्स ठवणा धण जोयणाणि ९३७५ । भायाम, रिण जोयणाणि ८१५६२५ । अहिंदवरदीवस्स खेत्तफलं रज्जूवे वग्गंणवरूवेहिं गुणिय एक्कसहस्त-चउवीसरूवेहि भजिदमेत्तं, पुणो रज्जूए सोलसमभागं ठविय तिण्णिलक्ख-पंचसट्टिसहस्स-छसय-पगवीसजायणेहिं गणिदमेत्तं परिहीणं होदि, पुणो सत्तसयचउसट्रिकोडि-चउसद्धिलक्ख-चउसीदिसहस्स-तिसय-पंचहत्तरिजोयणेहि परिहीणं होइ । तस्स ठवणा १. =...९ रिण रज्जूओ- ३६५६२५ रिण जोयणाणि ७६४६४८४३७५ । सयंभूरमणदीवस्स विक्खभं रज्जूए अट्टमभागं पुणो सत्ततीससहस्स-पंचसयजोयणेहिं अम्भहियं होदि, आयाम पुणो शवरज्जए भट्रमभागं पुणो पंचलक्ख बासट्टिमहस्स-पंचसयजोयणेहि परिहाणं होइ । तस्स उमणा क्षेत्रफलसे वारुणीवरद्वीपका क्षेत्रफल सोलहगुणा होकर सत्तरह लाख अट्ठाईस हजार करोड़ योजन अधिक है १७२८०००००००००० । इस प्रकार स्वयंभूरमणद्वीप तक अधस्तन द्वीपके क्षेत्रफलसे तदनन्तर उपरिम द्वीपका क्षेत्रफल सोलहगुणा होनेके अतिरिक्त प्रक्षेपभूत सत्तरह लाख अट्ठाईस हजार करोड़ योजनोंसे चौगुणा होता गया है। यहां विस्तार, आयाम और क्षेत्रफलके अन्तिम विकल्पको कहते हैं--- अहीन्द्रवरद्वीपका विस्तार राजुके बत्तीसवें भाग और नौ हजार तीन सौ पचत्तर योजन अधिक है, तथा इसका आयाम नौ राजुओंको रखकर बत्तीसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमेंसे आठ लाख पन्द्रह हजार छह सौ पच्चीस योजन हीन है। उसकी स्थापना इस प्रकार है- विस्तार रा. ३२ + यो. ९३७५ । आयाम रा. २ -- यो. ८१५६२५। अहीन्द्रवरद्वीपका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा करके एक हजार चौबीसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमेंसे, राजुके सोलहवें भागको रखकर तीन लाख पैंसठ हजार छह सौ पच्चीस योजनोंसे गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उतना, कम है, पुनः सात सौ चौंसठ करोड़ चौंसठ लाख चौरासी हजार तीन सौ पचत्तर योजन कम हैं। उसकी स्थापना इस प्रकार है रा.२ x ९ १०२४ - (रा. २६ ४ ३६५६२५ यो.)-७६४६४८४३७५ यो. । स्वयंभूरमणद्वीपका विस्तार राजुका आठवां भाग होकर सैंतीस हजार पांच सौ योजन अधिक है, और इसका आयाम नौ राजुओंके आठवें भागमें से पांच लाख बासठ हजार पांच सौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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