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________________ ८८ तिलोयपण्णती [५.२७२तिविहं सूहसमूह वारुणिवरउवहिपहुदिउवरिलं । चउलक्खगुणं अधियं अट्टरससहस्सकोडिपरिहीणं ॥२७२ सोलसमपक्खे अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो । तं जहा- धादईसंडदीवस्स विक्खंभं चत्तारिलक्खं, भायामं सत्तावीसलक्खं । पुक्खरवरदीवविक्खंभं सोलसलक्खं, आयामं पणतीसलक्खसहियएयकोडि जोयणपमाणं । वारुणिवरदीवविक्खंभे चउसद्धिलक्खं, आयाम सत्तसटिलक्खसहियपंचकोडीओ। एवं हट्ठिमविक्खंभादो उवरिमविक्खंभं चउगुणं, आयामादो आयामं चउग्गुणं सत्तावीसलक्खेहिं अभहियं होऊण गच्छद जाव सयंभूरमणदीओ त्ति। धादईसंडदीवखेत्तफलादो पोक्खरवरदीवस्स खेत्तफलं वीसगुणं । पुक्ख वारुणीवरसमुद्रप्रभृति उपरिम समुद्रकी तीनों प्रकारकी सूचियोंके समूहको चार लाखसे गुणा करके प्राप्त राशिसे अठारह हजार करोड़ कम करदेने पर अधिकताका प्रमाण आता है ॥ २७२॥ उदाहरण -(१) वारुणीवरसमुद्रकी आदि सूची २५३ ला. + म. सू. ३८१ ला. + बा. सू. ५०९ ला. = ११४३ ला.; ११४३ ला x ४ ला. - १८०००००००००० = ४५५४०००००००००० अतिरेकप्रमाण । . (२) स्वयंभूरमणसमुद्रकी आदि सूची% रा. - १५०००० यो.; मध्य सूची = रा. - ७५००० यो.; अन्त सूची = १ रा. । अतः इन तीनों सूचियोंका योग हुआ = रा. - २२५००० यो. । इस सूचियोंके योगमें चार लाखका गुणा करने व गुणनफलमेंसे १८ x १०० कम कर देनेसे प्राप्त हुआ = ९ लाख रा. यो. - २७०००० x १० । यह अधस्तन समुद्रोंके क्षेत्रफलसे पन्द्रहगुणितसे अधिकका प्रमाण हुआ । अतः अधस्तन समुद्रोंका क्षेत्रफल - रा.' - ५२५०० रा. यो. + १६८७५ - १० । इसका १५ गुणा हुआ = २६ रा.' - ७८७५०० रा. यो. + २५३१२५ x १० । इसमें उपर्युक्त सातिरेकप्रमाण जोड़नेसे स्वयंभूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल हुआ - १६ रा. + ११२५०० रा. यो. - १६८७५ x १० । सोलहवें पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है- धातकीखण्डद्वीपका विस्तार चार लाख और आयाम सत्ताईस लाख योजन है । पुष्करवरद्वीपका विस्तार सोलह लाख भौर आयाम एक करोड़ पैंतीस लाख योजन है । वारुणीवरद्वीपका विस्तार चौंसठ लाख और भायाम पांच करोड़ सड़सठ लाख योजन है । इस प्रकार अधस्तन द्वीपके विस्तारसे तदनन्तर उपरिम द्वीपका विस्तार चौगुणा और आयामसे आयाम चौगुणा होनेके अतिरिक्त सत्ताईस लाख योजन अधिक होता हुआ स्वयंभूरमणद्वीप तक चला गया है । भातकीखण्डद्वीपके क्षेत्रफलसे पुष्करवरद्वीपका क्षेत्रफल बीसगुणा है । पुष्करवरद्वीपके १९ व सरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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