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________________ ५७८ ] = ९८०००००००००० ठवणा गाहासुतं - लक्खेण भजिदअंतिमवासस्स' कदीए एगरूऊणं । अट्टगुणं हिट्टा संकलणादो दु उबरिमे बड्डी || २६३ पुणो इट्ठस्स दीवस्स वा समुहस्स वा हेट्ठिमदीवरयणायराणं मेलावणं भण्णमागेर लवणसमुहस्स खंडसलागादो लवणसमुद्दसंमिलिदधादईसंडदीवस्स खंडसलागाओ सत्तगुणं होदि । लवणणीर सिखंडसलागसंमिलिदधादई संड खंडसलागादो कालोदगस मुद्दखंड सलाग संमिलिदहेट्ठिमखंडसलागादु* पंचगुणं होदि । कालोदगसमुहस्स खंडसलाग संमिलिदद्देट्टिमदीउवहीणं खंडसलागादो पोक्खरवरदविखंडसलागसंमिलिदहेट्ठिमदीवरयणायराणं खंडसलागा चउग्गुणं होण तिष्णिसयसद्विरूवेहि भन्भद्दियं होदि । पोक्खरवर दीव खंडस लागसंमिलिदहे ट्ठिमदीवरयणायराणं खंडसलागादो पोक्खरवर समुद्दस मिलिदहेट्ठिम ज. तिलोयपण्णत्ती धण रज्जू - ३ ७००००० जगश्रेणी अधिक तथा चौदह कोश कम है । उसकी स्थापना इस प्रकार है ज. ३ यो. ७००००० Jain Education International [ ५.२६३ रिण कोस १४ । तब्वड्ढि आणयण हे दुमिमं ÷ यो. ९८०००००००००० + - इस वृद्धिप्रमाणको लानेके लिये यह गाथासूत्र है एक लाख भाजित अन्तिम विस्तारका जो वर्ग हो उसमेंसे एक कम करके शेषको आठसे गुणा करनेपर अधस्तन द्वीप - समुद्रों के शलाकासमूहसे उपरिम द्वीप व समुद्रकी खण्डशलाकाओंकी वृद्धिका प्रमाण आता है || २६३ ॥ को. १४ । उदाहरण- - कालोदकसमुद्रकी खण्डशलाका वृद्धि - [ ( ८ लाख :- १ लाख ) - १ ] x ८ = ५०४ कालोदककी खण्डशलाका वृद्धि । पुनः इष्ट द्वीप अथवा समुद्र के अधस्तन द्वीप समुद्रोंकी खण्डशलाकाओंका मिश्रित कथन करने पर लवणसमुद्रकी खण्डशलाकाओं से लवण समुद्रसम्मिलित धातकीखण्डद्वीप की खण्डशलाकायें सातगुणी हैं । लवणसमुद्रकी खण्डशलाकाओं से सम्मिलित धातकीखण्डद्वीपसम्बन्धी खण्डशलाकाओं की अपेक्षा कालोदकसमुद्रकी खण्डशलाओं सहित अधस्तन द्वीप - समुद्रोंकी खण्डशलायें पंचगुणी हैं । कालोदकसमुद्रकी खण्डशलाकासम्मिलित अधस्तन द्वीपसमुद्रसम्बन्धी खण्डशलाकाओं की अपेक्षा पुष्करवरद्वीपकी खण्डशलाकाओं सहित अधस्तन द्वीप - समुद्रोंकी खण्डशलाकायें चौगुणी होकर तीन सौ साठ अधिक हैं । पुष्करवरद्वीपकी खण्डशलाकाओं सहित अधस्तन द्वीप-समुद्रोंसम्बन्धी खण्डशलाकाओं की अपेक्षा पुष्करवरसमुद्रसम्मिलित For Private & Personal Use Only १ द 'वास' ब ' वास्त° २ द व अहं गुणंतिदाणं. ३ द ब भण्णिमाणे. ४ द ब ' खंडसलागादो. ५ www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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