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________________ ५. २०५] - पंचमो महाधियारो [५५५ णवजोयणउच्छेहा' गाउदगाढा सुवण्णरयणमई । तीए उत्तरभागे जिणभवणं होदि तम्मेत्तं ॥ २०० ९। को १। पवणदिसाए पढमप्पासादादो जिणिंदगेहसमा। चेदि उववादसभा कंचणवररयणणिवहमई॥२.१ . २५ । २५ । ९ । को । पुवदिसाए पढमप्पासादादो विचित्तविण्णासा। चेदि अभिसेयसभा उववादसभाए सारिच्छा ॥ २०२ तत्थ च्चिय दिब्भाए अभिसेयसभासरिच्छवासादी । होदि अलंकारसभा मणितोरणदाररमणिजा । २०३ तस्सि चिय दिब्भाए पुव्वसभासरिसउदयवित्थारा । मंतसभा चामीयररयणमई सुंदरदुवारा ॥ २०४ एदे छप्पासादा पुग्वेहिं मंदिरोहि मेलविदा। पंच सहस्सा चउसयअब्भहिया सत्तसटीहि॥२०५ ५४६७। . गाह का.१ सुवर्ण और रत्नमयी यह सभा नौ योजन ऊंची और एक गव्यूति अर्थात् कोशमात्र अवगाहसे सहित है । इसके उत्तरभागमें इतनेमात्र प्रमाणसे संयुक्त जिनभवन है ॥२०॥ उत्सेध ९ यो. । अवगाह को. १ । प्रथम प्रासादसे वायव्यदिशामें जिनेन्द्रभवनके समान सुवर्ण एवं उत्तम रत्नसमूहोंसे निर्मित उपपादसभा स्थित है ॥ २०१॥ लंबाई २५ । विस्तार २५ । उत्सेध ९ यो.। अवगाह १ को.। प्रथम प्रासादके पूर्वमें उपपादसभाके समान विचित्र रचनासे संयुक्त अभिषेकसभा स्थित है ॥२०२॥ __इसी दिशाभागमें अभिषेकसभाके समान विस्तारादिसे सहित और मणिय तोरणद्वारोंसे रमणीय अलंकारसभा है ॥२०३ ॥ इसी दिशाभागमें पूर्व सभाके सदृश उंचाई व विस्तारसे सहित, सुवर्ण एवं रत्नोंसे निमित, और सुन्दर द्वारोंसे संयुक्त मंत्रसभा है ॥ २०४ ॥ इन छह प्रासादोंको पूर्व मन्दिरोंमें मिलादेनेपर भवनोंकी समस्त संख्या पांच हजार चार सौ सड़सठ होती है ॥ २०५ ॥ ५४६७ । १ द ब उच्छेहो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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