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________________ ५३० ] तिलोय पण्णत्ती [ ५.६ मंदरगिरिमूलादो इगिलक्खं जोयणाणि बहलम्मि । रज्जूय पदरखेत्ते चिट्ठेदि' तिरियतसलोभो ॥६ = |१०००००। ४९ । तसलोयपरूवणा गदा । पणुवीसकोडको डीपमाणउद्वारपल्लरोमसमा । दीओवहीण संखा तस्सद्धं दीवजलणिही कमसो ॥ ७ । संखा समत्ता । Rod दीवसमुद्दा संखादीदा भवति समवट्टा । पढमो दीओो उवही चरिमो मज्झम्मि दीउवही ॥ ८ चित्तवरि बहुमज्झे रज्जूपरिमाणदीहविक्खंभे । चेति दीवउवही एक्केक्कं वेढिऊण हु प्परिदो ॥ ९ सव्वे विवाहिणीसा चित्तखिदिं खंडिदूण चेति । वज्जखिदीए उवरिं दीवा वि हु उवरि चित्ताए ॥ १० आदी जंबूदीओ हवेदि दीवाण ताण सयलाणं । अंते सयंभुरमणो णामेणं विस्सुदो दीओ ॥ ११ आदी लवणसमुद्दो" सव्वाण हवेदि सलिलरासीगं । अंते सयंभुरमणो णामेणं विस्सुदो उवही || १२ मंदरपर्वतके मूलसे एक लाख योजन बाहल्यरूप राजुप्रतर अर्थात् एक राजु लंबे-चौड़े क्षेत्र में तिर्यक्त्रसलोक स्थित है ॥ ६ ॥ १ राजु लम्बा चौड़ा और एक लाख योजन ऊंचा तिर्यंचोंका सलोक । त्रसलोकप्ररूपणा समाप्त हुई । पच्चीस कोड़ाकोडी उद्धारपल्यों के रोमोंके प्रमाण द्वीप व समुद्र दोनोंकी संख्या है । इसकी आधी क्रमशः द्वीपोंकी और आधी समुद्रों की संख्या है ॥ ७ ॥ संख्या समाप्त हुई । 1 सब द्वीप समुद्र असंख्यात एवं समवृत्त हैं । इनमेंसे पहिला द्वीप, अन्तिम समुद्र और मध्यमें द्वीप - समुद्र हैं ॥ ८ ॥ चित्रा पृथिवीके ऊपर बहुमध्यभागमें एक राजु लंबे-चौड़े क्षेत्र के भीतर एक एकको चारों ओरसे घेरे हुए द्वीप व समुद्र स्थित हैं ॥ ९ ॥ सब ही समुद्र चित्रा पृथिवीको खण्डित कर वज्रा पृथिवी के ऊपर, चित्रा पृथिवी के ऊपर स्थित हैं ॥ १० ॥ उन सब द्वीपोंके आदिमें जम्बूद्वीप और अन्तमें स्वयम्भूरमण नामसे प्रसिद्ध द्वीप है ॥ ११ ॥ सब समुद्रों में आदि लवणसमुद्र और अन्तिम स्वयम्भूरमण इस नामसे प्रसिद्ध समुद्र है ॥ १२ ॥ १ द चित्ते, ब चिचेदि हु. ५ द लवणसमुद्दे. Jain Education International २ ब दीउउवही. ३ द ब 'विक्खंभो. और सब द्वीप For Private & Personal Use Only ४ द ब परदो. www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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