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________________ जदिवसहाइरिय-विरइदा तिलोयपत्ती [पंचमो महाधियारो] भवकुमुदेक्कचंद चंदप्पहजिणवर' हि णमिऊणं । भासेमि तिरियलोयं लवमेत अप्पसत्तीए ॥ १ थावरलोयपमाणं मज्झम्मि य तस्स तिरियतसलोओ। दीवोवहीग संखा विण्णासो णामसंजुत्तं ॥ २ णाणाविहखेत्तफलं तिरियाणं भेदसंखआऊ य । आउगबंधणभावं जोणी सुहदुक्खगुणपहुदी ॥३ सम्मत्तगहणहेदू गदिरागदियोवबहुगमोगाहं । सोलसया अहियारा पण्णत्तीए हि तिरियाणं ॥ ४ जा जीवपोग्गलागं धम्माधम्मप्पबद्धआयासे । होति हु गदागदाणिं ताव हवे थावरालोओ॥५ । थावरलोयं गदं। भव्यजनरूप कुमुदोंको विकसित करनेके लिये एक अद्वितीय चन्द्रस्वरूप चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रको नमस्कार करके मैं अपनी शक्तिके अनुसार तिर्यग्लोकका लेशमात्र निरूपण करता हूं ॥१॥ स्थावरलोकका प्रमाण', उसके बीचमें तिर्यक् त्रसलोक, द्वीप-समुद्रोंकी संख्या', नामसहित विन्यास, नाना प्रकारका क्षेत्रफल, तिर्यंचोंके भेद', संख्या और आयु', आयुबन्धके निमित्तभूत परिणाम', योनि, सुख-दुःख', गुणस्थान आदिक, सम्यक्त्वग्रहणके कारण, गति-आगति', अल्पबहुत्व" और अवगाहना, इस प्रकार ये तिर्यंचोंकी प्रज्ञप्तिमें सोलह अधिकार हैं ॥२-४ ॥ धर्म व अधर्म द्रव्यसे संबन्धित जितने आकाशमें जीव और पुद्गलोका जाना-आना रहता है, उतना स्थावरलोक है ॥५॥ स्थावरलोकका कथन समाप्त हुआ । - १ द व जिणवरे हिं. T. P. 67. २ द ब लोए. ३ ब धम्मधहदुक्खगुणपहुदी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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