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________________ त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना जिसके कारण इस द्वीपका 'जम्बू द्वीप ' नाम प्रसिद्ध हुआ। अनवतप्त सरोवरके आगे गन्धमादन पर्वत है। जम्बूद्वीपके नीचे २०००० यो. प्रमाण अवीचि नामक नरक है । उसके ऊपर क्रमशः प्रतापन, तपन, महारौरव, रौरव, संघात, कालसूत्र और संजीव, ये सात नरक और हैं । इन नरकोंके चारों पार्श्वभागोंमें कुकूल, कुणप, क्षुरमार्गादिक (असिपत्र वन, श्यामशबल-श्व-स्थान, अयशाल्मली वन ) और खारोदक (वैतरिणी) नदी, ये चार उत्सद हैं | अर्बुद, निरर्बुद, अटट, हहव, हुहुव, उत्पल, पद्म और महापद्म, ये जम्बूद्वीपके अधोभागमें महानरकोंके धरातलमें आठ शीत नरक और हैं। मेरु पर्वतके अर्ध भागसे अर्थात् भूमिसे ४०००० यो. ऊपर चन्द्र व सूर्य परिभ्रमण करते हैं । इनमें चन्द्रमण्डलका प्रमाण पचास यो. और सूर्यमण्डलका प्रमाण इक्यावन यो. है । जिस समय जम्बूद्वीपमें मध्याह्न होता है उस समय उत्तरकुरुमें अर्धरात्रि, पूर्व विदेहमें अस्तगमन और अवरगोदानीयमें सूर्योदय होता है। भाद्र मासके शुक्ल पक्षकी नवमीसे रात्रिकी वृद्धि और फाल्गुन मासके शुक्ल पक्षकी नवमीसे उसकी हानिका प्रारम्भ होता है । रात्रिकी वृद्धि में दिनकी हानि व रात्रिकी हानिमें दिनकी वृद्धि होती है । सूर्यके दक्षिणायन व उत्तरायणमें क्रमशः रात्रि व दिनकी वृद्धि होती है। मेरु पर्वतके चार परिषण्ड ( विभाग ) हैं । प्रथम परिषण्ड मेरु और सीताजलसे १०००० यो. ऊपर स्थित है । इसके आगे क्रमशः दश-दश हजार यो. ऊपर जाकर द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ परिषण्ड हैं। इनमेंसे प्रथम परिषण्ड सोलह हजार यो., द्वितीय परिषण्ड आठ हजार यो., तृतीय परिषण्ड चार हजार यो. और चतुर्थ परिषण्ड दो हजार यो. मेरुसे बाहिर निकला है । प्रथम परिषण्डमें पूर्वकी ओर करोटपाणि यक्ष रहते हैं । इनका राजा धृतराष्ट्र है । द्वितीय परिषण्ड में दक्षिणकी ओर मालाधर रहते हैं। इनका राजा विरूढक है। तृतीय परिषण्डमें पश्चिमकी और सदामद रहते हैं । इनका राजा विरूपाक्ष है । चतुर्थ परिषण्डमें चातुमहाराजिक देव रहते हैं। इनका राजा - वैश्रवण है । इसी प्रकार शेष सात पर्वतोंपर भी इन देवोंका निवास है। मेरुशिखरपर त्रयस्त्रिंश (स्वर्ग) लोक है । इसका विस्तार अस्सी हजार योजन है। यहां त्रयस्त्रिंश देव रहते हैं। यहां चारों विदिशाओंमें वज्रपाणि देवोंका निवास है। त्रयस्त्रिंश लोकके मध्यमें इन्द्रका २५० यो. विस्तृत वैजयन्त नामक प्रासाद स्थित है। नगरके बाद भागमें चारों ओर चैत्ररथ, पारुष्य, मिश्र और नन्दन, ये चार वन हैं। इनके चारों ओर बीस योजनके अन्तरसे देवोंके क्रीडास्थल हैं। प्रयस्त्रिंश लोकके ऊपर विमानोंमें याम, तुषित, निर्माणरति और परनिर्मितवशवी देव रहते हैं । कामधातुगत देवोंमेंसे चातुर्महाराजिक और त्रयस्त्रिंश देव मनुष्यवत् कामभोग भोगते हैं । याम, तुषित, निर्माणरति और परनिर्मितवशवर्ती देव क्रमशः आलिंगन, पाणिसंयोग, इसित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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