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________________ -१. १४०] पढमो महाधियारो [१७ मादिणिहणेण हीणो पगदिसरूवेण एस संजादो। जीवाजीवसमिद्धो सम्वण्हावलोइओ लोओ।। १३३ धम्माधम्मणिबद्धा गदिरगदी जीवपोग्गलाणं च। जेत्तियमेत्ताआस लोयाासो स णादवो ॥ १३४ - लोयायासट्टाणं सर्यपहाणं सदब्वछक्कं हु । सम्बमलोयायासं तं सम्बासं हवे णियमा ॥ १३५ सयलो एस य लोओ णिप्पण्णो सेढिविंदमाणेण । तिवियप्पो णादवो हेटिममज्झिल्लउड्डभेएण ॥ १३६ हेट्रिमलोयायारो वेत्तासणसण्णिहो सहावेण । मज्झिमलोयायारो उम्भियमुरअद्धसारिच्छो ॥१३७ उवरिमलोयाआरो उब्भियमुरवेण होइ सरिसत्तो। संठाणो एदाणं लोयाणं एहिं साहमि ॥ १३८ संदिट्टी-वादरं। तंमज्झे मुहमेक्वं भूमि जहा होदि सत्त रज्जूवो। तह छिदिदम्मि मज्झे हेटिमलोयस्स आयारो ॥ १३९ दोपक्खखत्तमेत्तं उचलयंतं पुण टुवेर्ण । विवरीदेणं मेलिदे वासुच्छेहा सत्त रज्जूओ॥ १४० सर्वज्ञ भगवान्से अवलोकित यह लोक आदि और अन्तसे रहित अर्थात् अनाद्यनन्त है, स्वभावसे ही उत्पन्न हुआ है, और जीव एवं अजीव द्रव्योंसे व्याप्त है ।। १३३ ॥ जितने आकाशमें धर्म और अधर्म द्रव्यके निमित्तसे होनेवाली जीव और पुद्गलोंकी गति एवं स्थिति हो, उसे लोकाकाश समझना चाहिये ॥ १३४ ॥ छह द्रव्योंसे सहित यह लोकाकाशस्थान निश्चय ही स्वयंप्रधान है । इसकी सब दिशाओंमें नियमसे सब अलोकाकाश स्थित है ॥ १३५॥ श्रेणीवृंदके मानसे अर्थात् जगश्रेणीके धनप्रमाणसे निष्पन्न हुआ यह सम्पूर्ण लोक अधोलोक, मध्यलोक और उर्ध्वलोकके भेदसे तीन प्रकारका है ॥ १३६ ॥ इनमेंसे अधोलोकका आकार स्वभावसे वेत्रासनके सदृश, और मध्यलोकका आकार खड़े किए हुए आधे मृदंगके ऊर्श्वभागके समान है ॥ १३७ ॥ ऊर्ध्वलोकका आकार खड़े किये हुए मृदंगके सदृश है। अब इन तीनों लोकोंके आकारको कहते हैं ।। १३८ ॥ उस सम्पूर्ण लोकके बीचमेंसे जिसप्रकार मुख एक राजु और भूमि सात राजु हो, इसप्रकार मध्यमें छेदनेपर अधोलोकका आकार होता है ॥ १३९॥ दोनों ओर फैले हुए क्षेत्रको उठाकर अलग रखदे, फिर विपरीतक्रमसे मिलाने पर विस्तार और उत्सेध सात सात राजु होता है ॥ १४० ।। १द सव्वणहावअववो,बसवणहावलोयवो. २ दबगदिरागदि. ३ दब मेत्ताआसो. ४ बतं संवासं. ५ द तिम्वियप्पो. ६ द उच्चलयतं. TP.3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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