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-१.२५]
पढमो महाधियारो
पावं मलं ति भण्णइ उवचारसरूवएणजीवाणं। तं गालेदि विणासं दि त्ति भणति मंगलं केई॥ १७ णामणिट्ठावणा दो दव्वखेत्ताणि कालभावा य। इय छब्भेयं भणियं मंगलमाणंदसंजणणं ॥ १८ मरहाणं सिद्धाणं आइरियउवज्झयाइसाहूर्ण'। णामाई णाममंगलमुद्दिष्टुं वीयराएहिं ॥ १९ ठावणमंगलमेदं अकट्टिमाकट्टिमाणि जिणबिंबा। सूरिउवज्झयसाहूदेहाणि हदब्वमंगलयं ॥ २१ गुणपरिणदासणं परिणिक्कमणं केवलस्स णाणस्स । उप्पत्ती इयपहदी बहुभेयं खत्तमंगलयं ॥२॥ एदस्त उदाहरणं पावाणगरुज्जयंतचंपादी। आउट्ठहत्थपहुदी पणुवीसब्भहियपणसयधणूणि ॥ २२ देहअवट्टिदकेवलणाणावट्ठद्धगयणदेसो वा । सेढिघणमेत्तअप्पप्पदेसगदलोयपूरणापुण्णा ॥ २३) विस्साणं लोयाणं होदि पदेसा वि मंगलं खेत्तं । जस्सि काले केवलणाणादिमंगलं परिणमति ॥ २४ परिणिक्कमणं केवलणाणुब्भवणिव्वुदिप्पवेसादी। पावमलगालणादो पण्णतं कालमंगलं एवं ॥ २५
जीवोंके पापको उपचारसे मल कहा जाता है । उसे यह मंगल गलाता है, विनाशको प्राप्त करता है, इस कारण भी कोई आचार्य इसे मंगल कहते हैं ॥ १७ ॥
आनन्दको उत्पन्न करनेवाला यह मंगल नाम और स्थापना ये दो, तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ( ये चार ), इस प्रकार छह भेदरूप कहा गया है ॥ १८ ॥
वीतराग भगवान्ने अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, इनके नामोंको नाममंगल कहा है ।। १९॥
जिन भगवानके जो अकृत्रिम और कृत्रिम प्रतिबिम्ब हैं, वे सब स्थापनामंगल हैं । तथा आचार्य, उपाध्याय और साधुके शरीर द्रव्यमंगल हैं ॥ २० ॥
गुणपरिणत आसनक्षेत्र, अर्थात् जहांपर योगासन, वीरासन आदि विविध आसनोंसे तदनुकूल ध्यानाभ्यास आदि अनेक गुण प्राप्त किये गये हों ऐसा क्षेत्र, परिनिष्क्रमण अर्थात् दीक्षाका क्षेत्र, केवलज्ञानोत्पत्ति-क्षेत्र, इत्यादिरूपसे क्षेत्रमंगल बहुत प्रकारका है ॥ २१ ॥
___ इस क्षेत्रमंगलके उदाहरण पावानगर, ऊर्जयन्त [गिरनार पर्वत ] और चम्पापुर आदि हैं। अथवा, साढे तीन हाथसे लेकर पांचसौ पच्चीस धनुषप्रमाण शरीरमें स्थित और केवलज्ञानसे व्याप्त आकाश-प्रदेशोंको क्षेत्रमंगल समझना चाहिये । अथवा, जगच्छ्रेणीके धनमात्र अर्थात् लोकप्रमाण आत्माके प्रदेशोंसे लोकपूरणसमुद्घात द्वारा पूरित सभी [ ऊर्ध्व, अधो व तिर्यक् ] लोकोंके प्रदेश भी क्षेत्रमंगल हैं।
जिस कालमें जीव केवलज्ञानादिरूप मंगलमय पर्यायको प्राप्त करता है उसको, तथा परिनिष्क्रमण अर्थात् दीक्षाकाल, केवलज्ञानके उद्भवका काल, और निर्वृति अर्थात् मोक्षके प्रवेशका काल, यह सब पापरूपी मलके गलानेका कारण होनेसे कालमंगल कहा गया है ॥ २२-२५॥
१ व उवज्मायाइ°. २ द सेढिघणमित्तअप्पपदेसजदं. ३ ब पूरणं पुण्णं. ४ द ब विण्णासं.
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