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तिलोयपण्णत्ती
[१.२६
एवं अणेयमेयं हवेदि तं कालमंगलं पवरं । जिणमहिमासंबंधं गंदीसरदीवपहदीओ ॥ २६ मंगलपज्जाएहिं उवलक्खियजीवदग्वमेत्तं च । भावं मंगलमेदं पढियं सत्यादिमझयंतेस ॥ २७ पुचिल्लाइरिएहिं उत्तो सत्थाण मंगलं जो सो । आइम्मि मज्झअवसाणे य सुणियमेण कायव्वो२८ पढमे मंगलवयणे सिस्सा सत्थस्स पारगा होति । मज्झिम्मे णीविग्धं विजा विजाफलं चरिमे ॥ २९ णासदि विग्धं भेददि यहो दुट्टा सुराण लंघंति । इट्टो अत्थो लब्भइ जिणणामग्गहणमेत्तेण ॥ ३० सत्थादिमज्मअवसाणएसु जिणतोत्तमंगलुच्चारो। णासइ णिस्सेसाई विग्याई रवि व्व तिमिराई॥३॥
। इदि मंगलं गई । विविहवियप्पं लोग बहभेयप्पमाणदो भव्वा । जाणंति त्ति णिमित्तं कहिदं गंथावतारस्स ॥ ३२ केवलणाणदिवायरकिरणकलावादु यत्थअवदारो। "गणधरदेवें गंथुप्पत्ति हु सो हंदि संजादो ॥ ३३
इसप्रकार जिनमहिमासे सम्बन्ध रखनेवाला वह श्रेष्ठ कालमंगल अनेक भेदरूप है, जैसे नन्दीश्वर द्वीपसंबंधी पर्व आदि ॥२६॥
वर्तमानमें मंगलरूप पर्यायोंसे परिणत जो शुद्ध जीवद्रव्य है वह भावमंगल है। ऐसे अनेक भेदरूप यह मंगल शास्त्रके आदि, मध्य और अन्तमें पढ़ा गया है ॥२७॥
पूर्वकालीन आचार्योंने जो शास्त्रोंका मंगल कहा है उस मंगलको नियमसे शास्त्रोंके आदि, मध्य और अन्तमें करना ही चाहिये ॥२८॥
शास्त्रके आदिमें मंगलके पढनेपर शिष्यलोग शास्त्रके पारगामी होते हैं, मध्यमें मङ्गलके करनेपर निर्विघ्न विद्याकी प्राप्ति होती है, और अन्तमें मंगलके करनेपर विद्याका फल प्राप्त होता है ॥२९॥
____ जिनभगवान्के नामके ग्रहण करनेमात्रसे विघ्न नष्ट हो जाते हैं, पाप खण्डित होता है, दुष्ट देव लांघते नहीं, अर्थात् किसी प्रकारका उपद्रव नहीं करते, और इष्ट अर्थकी प्राप्ति होती है ॥३०॥
शास्त्रके आदि, मध्य और अन्तमें किया गया जिनस्तोत्ररूप मङ्गलका उच्चारण सम्पूर्ण विनोंको उसीप्रकार नष्ट कर देता है जिसप्रकार सूर्य अंधकारको ॥ ३१ ॥
इसप्रकार मंगलका कथन समाप्त हुआ। नाना भेदरूप लोकको भव्य जीव अनेक प्रकारके प्रमाणोंसे जान जाय, यह इस त्रिलोकप्रज्ञप्तिरूप ग्रन्थके अवतारका निमित्त कहा गया है ॥ ३२ ॥
केवलज्ञानरूपी सूर्यकी किरणोंके समूहसे श्रुतके अर्थका अवतार हुआ, तथा गणधरदेवके द्वारा ग्रंथकी उत्पत्ति हुई । इस प्रकार कल्याणकारी श्रुतकी उत्पत्ति हुई ॥ ३३ ॥
१द पच्चियपच्छादि, ब पब्वियसत्थादि. २द ब संठाणमंगलं घोसो. ३द दुढासुत्ताण, ब दुट्ठासुवाण. ४ द ब लद्धो. ५ ब भेयपमाणदो. ६ द अवहारो, ब अवहारे. ७ द गणधरदेहें. ८ द सोहंति संजादो, ब सोहंति सो जादो.
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