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________________ ४५४ ] तिलोय पण्णत्ती [ ४.२४७३ (एरावदविजभोदिदर तो दावाहिणीए पणिधीए । मागधदीवसरिच्छो होदि समुद्दम्मि मागधो दीओ ॥ २४७३ अवराजिददारस्सप्पणित्रीए होदि लवणजलहिम्मि । वरतणुणामो दीओो वरतणुदीवोवमो अण्णो ॥ २४७४ एरावदखिदिणिग्गद रत्तापणिधीए लवणजलहिम्मि । अण्णो पभासदीभो पभासदीओ व चेट्ठेदि || २४७५ मागधीत्रसमाणं सव्वं चिथ वण्णणं पभासस्स । चेट्ठदि परिवारजुदो पभासणामो सुरो तसि ॥ २४७६ जे अब्भंतरभागे लवणसमुहस्स पब्वदा दीवा । ते सब्वे चेट्टंते नियमेणं बाहिरे भागे || २४७७ ( दीवा लवणसमुद्दे अडदाल कुमाणुसाण चउवीसं । अब्भंतरम्मि भागे तेत्तियमेत्ताए बाहिरए || २४७८ ७८) चारि चउदिसासुं चउविदिसासुं इवंति चत्तारि । अंतरदिसासु अट्ठ य भट्ठ य गिरिपणिधिठाणेसुं ॥ २४७९ ४८ । २४ । २४ । ४ । ४ । ८।८। पंचसयजोयणाणि गंतूणं जंबुदीवजगदीदो । चत्तारि होंति दीवा दिसासु विदिसासु तम्मेत्तं ।। २४८० ५०० | ५०० । पण्णाधिपंचसया गंतुणं होंति अंतरा दीवा । छस्सयजोयणमेत्तं गच्छिय गिरिपणिधिगददीवा ॥ २४८१ ५५० । ६०० । ऐरावतक्षेत्र में कही हुई रक्तोदानदीके पार्श्वभाग में मागधद्वीप के सदृश समुद्रमें मागधद्वीप है || २४७३ ॥ अपराजितद्वारके पार्श्वभाग में वरतनुद्वीप के सदृश अन्य वरतनु नामक द्वीप लवणसमुद्र में स्थित है || २४७४ ॥ लवण समुद्र में ऐरावत क्षेत्रमेंसे निकली हुई रक्तानदी के पार्श्व भाग में प्रभासद्वीप के सदृश अन्य प्रभासद्वीप स्थित है | २४७५ ॥ प्रभासद्वीपका सम्पूर्ण वर्णन मागधद्वीपके समान है । इस द्वीपमें परिवारसे युक्त होकर प्रभास नामक देव रहता है || २४७६ ॥ लवणसमुद्रके अभ्यन्तर भाग में जो पर्वत और द्वीप हैं, वे सब नियमसे उसके बाह्य भागमें भी स्थित हैं ॥ २४७७ ॥ लवणसमुद्र में अड़तालीस कुमानुषोंके द्वीप हैं। इनमेंसे चौबीस द्वीप तो अभ्यन्तर भाग में और इतने ही बाह्य भागमें भी हैं ।। २४७८ ॥ २४ + २४ = ४८ । उपर्युक्त चौबीस द्वीपों में से चारों दिशाओं में चार, चारों विदिशाओं में चार, अन्तरदिशाओं में आठ और पर्वतोंके प्रणिधिभागों में आठ हैं ॥ २४७९ ॥ ४ + ४ + ८ + ८ = २४ । जम्बूद्वीप की जगती से पांचसौ योजन जाकर चार द्वीप चारों दिशाओं में और इतने ही योजन जाकर चार द्वीप चारों विदिशाओंमें भी हैं || २४८० || ५०० | ५०० | अन्तरदिशाओंमें स्थित द्वीप जम्बूद्वीपकी जगतीसे पांचसौ पचास योजन और पर्वतों के प्रणिधिभागों में स्थित द्वीप छहसौ योजनमात्र जाकर हैं || २४८१ ॥ ५०० । ६०० । १ गाथेयं प्रत्योः २४७२ - २४७३ गाथयोर्मध्ये लभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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