SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -४.२४७२ ] चउत्थो महाधियारो [ ४५३ वेलंधरवेंतरया पम्वदणामह संजुदा तेसुं । कीडंति मंदिरेसुं विजयो व्व णिमाउपहुदिजुदा ॥ २४६३ उदको णामेण गिरी होदि कर्दबस्स उत्तरदिसाए । उदकाभासो दक्खिणदिसाए ते णीलमणिवण्णा ॥२४॥ सिवणामा सिवदेओ कमेण उवरिम्मि ताण सेलाणं । कोत्थुभदेवसरिच्छा आउप्पहुंदीहिं चेटुंति ॥ २४६५ वडवामुहपुव्वाए दिसाए संख त्ति पम्वदो होदि । पच्छिमए महसंखो दिसाए ते संखसमवण्णा ॥ २४६६ उदगो उदगावासो कमसो उवरिम्मि ताण चेटुंति । देवा आउप्पहुदिसु उदगाचलदेवसारिच्छा ॥ २४६७ दकणामो होदि गिरी दक्षिणभागम्मि जूवकेसरिणो । दकवासो उत्तरए भाए वेरुलियमणिमया दोष्णि ॥२४६८ उवरिम्मि ताण कमसो लोहिदणामो य लोहिदकक्खो । उदयगिरिस्स सरिच्छा आउप्पहुदीसु होंति सुरा॥२४६९ एदाणं देवाणं णयरीमो अवरजंबुदीवम्मि । होति णियणियदिसाए अवराजिदणयरसारिच्छा ॥ २४७० बादालसहस्साई जोयणया जंबुदीवजगदीदो। गंतूण अट्ट दीवा णामेणं सूरदीउ ति॥२४७१ ४२०००। पुव्वपवण्णिदकोत्थुहपहुदीणं हवंति दोसु पासेसुं । एदे दीवा मणिमयणिग्गच्छियदीमा पभासंति ॥ २४७२ - इन प्रासादोंमें, विजयदेवके समान अपनी आयु-आदिकसे सहित और पर्वतोंके नामोंसे संयुक्त वेलंधर व्यन्तरदेव क्रीडा करते हैं ॥ २४६३ ॥ ___कदंबपातालकी उत्तरदिशामें उदक नामक पर्वत और दक्षिणदिशामें उदकाभास नामक पर्वत स्थित है । ये दोनों पर्वत नीलमणि जैसे वर्णवाले हैं ॥ २४६४ ॥ __उन पर्वतोंके ऊपर क्रमसे शिव और शिवदेव नामक देव निवास करते हैं। इनकी आयुप्रभृति कौस्तुभदेवके समान है ॥ २४६५ ॥ वड़वामुख पातालकी पूर्वदिशामें शंख और पश्चिमदिशामें महाशंख नामक पर्वत है। ये दोनों ही शंखके समान वर्णवाले हैं ॥ २४६६ ॥ ___ इनके ऊपर क्रमसे उदक और उदकावास नामक देव स्थित ह । ये दोनों देव आयुआदिकोंमें उदकपर्वतपर स्थित देवके सदृश हैं ॥ २४६७ ॥ __ यूपकेशरीके दक्षिणभागमें दक नामक पर्वत और उत्तरभागमें दकवास नामक पर्वत स्थित है । ये दोनों ही पर्वत वैडूर्यमणिमय हैं ॥ २४६८ ॥ ___ उनके ऊपर क्रमसे लोहित और लोहितांक नामक देव निवास करते हैं। ये देव आयुआदिकोंमें उदकपर्वतपर रहनेवाले देवके समान हैं ॥ २४६९ ॥ इन देवोंकी नगरियां अपर जम्बूद्वीपमें अपनी अपनी दिशामें अपराजित नगरके समान हैं ॥ २४७०॥ जम्बूद्वीपकी जगतीसे ब्यालीस हजार योजन जाकर ' सूर्यद्वीप' नामसे प्रसिद्ध आठ द्वीप हैं ॥ २४७१ ॥ ४२००० । ये द्वीप पूर्वमें बतलाये हुए कौस्तुभादिक पवतोंके दोनों पार्श्वभागोंमें स्थित होकर निकले हुए मणिमय दीपकोंसे युक्त प्रकाशमान हैं ॥ २४७२ ॥ १ द महसंखे, २ ब दिसु एते. ३ द ब दोण्णि य णिय'. ४ द सूरदेओ त्ति, ब सुरदीउ त्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy