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________________ -१. २४९० ] चउत्थो महाधियारो ४५५ एकसयं पणवण्णा पण्णा प[वीस जोयणा कमसो । वित्थारजुदा ताणं एकेकं होदि तडवेदी ॥ २४८२ १००। ५५ । ५०।२५। ते सव्वे वरदीवा वणसंडेहिं दहेहि रमणिज्जा । फलकुसुमभारभरिदा रसेहिं महुरोहिं सलिलेहिं ।। २४८३ (एक्कोरुकलंगुलिको वेसणकाभासका य णामेहिं । पुन्वादिसुं दिसासुं चउदीवाणं कुमाणुसा होति ॥ २४४४ सक्कुलिकण्णा कण्णप्पावरणा लंबकण्णससकण्णा । अग्गिदिसादिसु कमसो चउदीवकुमाणुसा एदे ॥ २४८५ सिंहस्ससाणमहिसव्वरहासद्दलघुककपिवदणा । सक्कुलिकण्णेकोरुगपहुदीणं अंतरेसु ते कमसो ॥ २४८६ मच्छमुहा कालमुहा हिमगिरिपणिधीए पुव्वपच्छिमदो । मेसमुहगोमुहक्खा दक्खिणवेयड्पणिधीए ॥ २४८७ पुवावरेण सिहरिप्पणिधीए मेघविज्जुमुहणामा । आदसणहस्थिमुहा उत्तरवेयड्डपणिधीए ॥२४८८ एक्कोरुगा गुहासु वसंति भुजंति मट्टियं मिटुं । सेसा तरुतलवासा पुप्फेहि फलेहिं जीवंति ॥ २४८९ धादइसंडदिसासु तेत्तियमेत्ता वि अंतरा दीवा। तेसुं तेत्तियमेत्ता कुमाणुसा होति तण्णामा ॥ २४९० ये द्वीप क्रमसे एकसौ, पचवन, पचास और पच्चीस योजनप्रमाण विस्तारसे सहित हैं उनमेंसे एक एकक तटवेदी है ॥ २४८२ ॥ . दिशागत १०० । विदिशागत ५५ । अन्तरद्वीपस्थ ५० । पर्वतप्रणिधिस्थ २५ । . वे सब उत्तम द्वीप वनखण्ड व तालाबोंसे रमणीय, फल-फूलोंके भारसे संयुक्त, तथा मधुर रस एवं जलसे परिपूर्ण हैं ॥ २४८३ ॥ पूर्वादिक दिशाओंमें स्थित चार द्वीपोंके कुमानुष क्रमसे एक जंघावाले, पूंछवाले, सींगवाले और अभाषक अर्थात् गूंगे होते हुए इन्हीं नामोंसे युक्त हैं ॥ २४८४ ॥ अग्नि-आदिक विदिशाओंमें स्थित ये चार द्वीपोंके कुमानुष क्रमसे शष्कुलीकर्ण, कर्णप्रावरण, लंबकर्ण और शशकर्ण होते हैं ॥ २४८५ ॥ ____ शष्कुलीकर्ण और एकोरुक आदिकोंक बीचमें अर्थात् अन्तरदिशाओंमें स्थित आठ द्वीपोंके वे कुमानुष क्रमसे सिंह, अश्व, श्वान, महिष, वराह, शार्दूल, घूक और बन्दरके समान मुखवाले होते हैं ॥ २४८६ ॥ - हिमवान्पर्वतके प्रणिधिभागमें पूर्व-पश्चिम दिशाओंमें क्रमसे मत्स्यमुख व कालमुख तथा दक्षिणविजयार्द्धके प्राणिधिभागमें मेषमुख व गोमुख कुमानुष होते हैं ॥ २४८७ ॥ शिखरीपर्वतके पूर्व-पश्चिम प्रणिधिभागमें क्रमसे मेधमुख व विद्युन्मुख तथा उत्तरविजायार्द्धके प्रणिधिभागमें आदर्शमुख व हस्तिमुख कुमानुष होते हैं ॥ २४८८ ॥ इन सबमेंसे एकोरुक कुमानुष गुफाओंमें रहते हैं और मिठी मिट्टीको खाते हैं । शेष सब वृक्षोंके नीचे रहकर फल-फूलोंसे जीवन व्यतीत करते हैं ॥ २४८९ ॥ • धातकीखण्डद्वीपकी दिशाओंमें भी इतने ही अन्तरद्वीप और उनमें रहनेवाले पूर्वोक्त नामोंसे युक्त उतने ही कुमानुष भी हैं ॥ २४९० ॥ १ द ब भजिदा. २ ब रंगुलिका. ३ द ब 'साणपहयरिओवरहा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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