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________________ ४३० ] तिलोयपण्णत्ती [ ४. २२५९ विजाहराण तसि पत्तेक्कं दोतडेसु णयराणि । पंचावण्णा होंति हु कूडाण य अण्णणामाणिं ॥ २२५९ सिद्धक्खकच्छखंडा पुण्णाविजयड्ढमाणितिमिसगुहा । कच्छो वेसमणो णत्र णामा एदस्स कूडाणं ॥ २२६० सब्वेसुं कूडेसुं मणिमयपासादसोहमाणेसुं । चेद्वंति भट्टकूडे ईसादिस्त वाहणा देवा ॥ २२६१ णीलाचलदक्खिणदो उत्रवणवेदीए' दक्खिणे पासे । कुंडाणि' दोण्णि वेदीतोरणजुत्ताणि चेट्ठति ।। २२६२ ताणं दक्खिणतोरणदारेणं णिग्गदा दुवे सरिया । रत्तारत्तोदक्खा पुह पुह गंगाय सारिच्छा ॥ २२६३ रत्तारत्तोदाहिं वेयडूणगेण कच्छविजयम्मि । सव्त्रत्थ समाणाओ छक्खंडा णिम्मिदा एदे || २२६४ रत्तारत्तोदाओ जुदाओ चोदससहस्समेत्ताहिं । परिवारवाहिणीहिं णिचं पविसंति सीदोदं ॥ २२६५ १४०००। सीदाए उत्तरदो विजयद्भुगिरिस्स दक्खिणे भागे । रत्तारत्तोदाणं भज्जाखंडं भवेदि विचाले ।। २२६६ वदणिहिदो अट्ठारसदेसभाससंजुत्तो । कुंजरतुरगादिजुदो णरणारीमंडिदा रम्मो ॥ २२६७ इस पर्वत के ऊपर दोनों तटोंमेंसे प्रत्येक तटपर विद्याधरोंके पचवन नगर हैं, और कूटोंके नाम भिन्न भिन्न हैं ॥ २२५९ ॥ सिद्ध, कच्छा, खण्डप्रपात, पूर्णभद्र, विजयार्द्ध, माणिभद्र, तिमिश्रगुह, कच्छा और वैश्रवण, ये क्रमशः इस विजयार्द्धके ऊपर स्थित नौ कूटोंके नाम हैं || २२६० ॥ मणिमय प्रासादोंसे शोभायमान इन सब कूटोंमेंसे आठ कूटोंपर ईशानेन्द्रके वाहनदेव रहते हैं || २२६१ ॥ नीलपर्वत से दक्षिण की ओर उपवनवेदीके दक्षिणपार्श्वभाग में वेदीतोरणयुक्त दो कुण्ड स्थित हैं || २२६२ ॥ इन कुण्डोंके दक्षिण तोरणद्वार से गंगानदीके सदृश पृथक् पृथक् रक्ता और रक्तोदा नामक दो नदियां निकली हैं ॥ २२६३ ॥ रक्ता-रक्तोदा और विजयार्द्धपर्वत से कच्छादेश में सर्वत्र समान ये छह खण्ड निर्मित हुए हैं ॥ २२६४ ॥ चौदह हजारप्रमाण परिवारनदियों से युक्त ये रक्ता-रक्तोदा नदियां नित्य सीतानदी में प्रवेश करती हैं ॥ २२६५ ॥। १४००० । सीतानदी उत्तर और विजयार्द्धगिरिके दक्षिणभाग में रक्ता-रक्तोदा के मध्य आर्यखण्ड है ॥ २२६६ ॥ यह आर्यखण्ड अनेक देशोंसे सहित, अठारह देशभाषाओंसे संयुक्त, हाथी व अश्वादिकोंसे युक्त और नर-नारियोंसे मण्डित होता हुआ रमणीय है || २२६७ ॥ १ द ब देवीए . Jain Education International २ द ब कुण्डाण. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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