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-४. २२५८]
चउत्थो महाधियारो
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परचक्कभीदिरहिदो अण्णायपयट्टणेहि परिहीणो । अइवद्विअणावट्ठीपरिचत्तो सव्वकालेसं॥ २२५१ अवदुंबरफलसरिसा धम्माभासा ण तत्थ सुवति । सिववम्मविण्हुचंडीरविससिबुद्धाण ण पुराणि ॥ २२५२ पासंडसमयचत्तो सम्माइटीजणोघसंछण्णो । णवरि विसेसो केसि पयदे भावमिच्छत्तं ॥ २२५३ मागधवरतणुवेहि य पभासदीवहिं कच्छविजयस्स । सोहेदि उवसमुद्दो वेदीचउतोरणेहिं जुदो ॥ २२५४ अंतोमुहुत्तमवरं कोडी पुव्वाण होदि उक्कस्सं । आउस्स य परिमाणं णराण णारीण कच्छम्मि ॥ २२५५
पुव १०००००००। उच्छेहो दंडाणि पंचसया विविहवण्णमावणं । चउसट्ठी पुट्ठट्ठी अंगेसु णराण णारीणं ॥ २२५६
५००।६४ । कच्छस्स य बहुमज्झे सेलो णामेण दीहविजयड्डो । जोयणसयद्धवासो समदीहो देसवालेणं ॥ २२५७
५० । २२१२।७।
सव्वाओ वण्णणाओ भणिदा वरभरहखेत्तविजयड्डे । एदस्सि णादव्वं णवरि विसेस णिरूवेमो ॥ २२५८
यह देश सदा परचक्रकी भीतिसे रहित, अन्यायप्रवृत्तियोंसे विहीन और अतिवृष्टि-अनावृष्टिसे परित्यक्त है ।। २२५१ ॥
उदुम्बरफलोंके सदृश धर्माभास वहां सुने नहीं जाते । शिव, ब्रह्मा, विष्णु, चण्डी, रवि, शशि व बुद्ध के मंदिर वहां नहीं हैं ॥ २२५२ ॥
वह देश पाषण्ड सम्प्रदायोंसे रहित और सम्यग्दृष्टि जनोंके समूहसे व्याप्त है। विशेष इतना है कि यहां किन्हीं जीवोंके भावमिथ्यात्व विद्यमान रहता है ॥ २२५३ ॥
वेदी और चार तोरणोंसे युक्त कक्षादेशका उपसमुद्र मागध, वरतनु एवं प्रभास द्वीपोंसे शोभायमान है ॥ २२५४ ॥
___कच्छादेशमें नर-नारियोंकी आयुका प्रमाण जघन्यरूपसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टरूपसे पूर्वकोटिमात्र है ॥ २२५५ ॥ पूर्व १००००००० ।
वहांपर विविध वर्णों से युक्त नर-नारियोंके शरीरकी उंचाई पांचसौ धनुष और पृष्ठभाग की हड्डियां चौंसठ होती हैं ॥ २२५६ ॥ ५०० । ६४ ।
कच्छादेशके बहुमध्यभागमें पचास योजन विस्तारवाला और देशविस्तारसमान लंबा दीर्घविजयार्द्ध नामक पर्वत है ॥ २२५७ ॥ ५० । २२१२३ ।
उत्तम भरतक्षेत्रसम्बन्धी विजया के विषयमें जिसप्रकार सम्पूर्ण वर्णन किया गया है, उसी प्रकार इस विजया का भी वर्णन समझना चाहिये। उक्त पर्वतकी अपेक्षा यहां जो कुछ विशेषता है उसका निरूपण किया जाता है ॥ २२५८ ॥
१ द ब सुद्धति. २ द ब विजयड्ढो.
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