SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपण्णत्ती [ ४. २२२६ चउणउदिसहस्साणिं सोधिय वासा छपण्णएक्कसयं । सेसस्स अमेत्तं देवारण्णाण विक्खंभो ॥ २२२६ ९४१५६ । २९२२ । छप्पण्णसहस्साणिं सोधिय वासाभो जोयणाणं च । सेसं दोहि विहत्तं विक्खंभो भद्दसालस्स ॥ २२२७ ५६०००। २२००० । विक्खभादो सोधिय णउदिसहस्साणि जोयणाणं च । अवसेसं जं लद्धं सो मंदरमूलविक्खंभो ॥ २२२८ ९००००। १००००। चउवण्णसहस्साणि सोधिय दीवस वासमझम्मि । सेसद्धं पुवावरविदेहमाणं खु पत्तेकं ॥ २२२९ ५४०००।२३०००। सीदारुंदं सोधिय विदेहरुंदम्मि सेसदलमेत्तो। आयामो विजयाणं वक्खारविभंगसरियाणं ॥ २२३० सोलससहस्सयाणि बाणउदी समधिया य पंचसया। दो भागा पत्तेकं विजयप्पहुदीण दीहत्तं ॥ २२३१ १६५९२ । क२। अट्ठावीससहस्सा एक्काए विभंगसिंधूए । परिवारवाहिणीभो विचित्तरूवामओ रेहति ॥ २२३२ २८०००। सीदाय उत्तरतडे पुर्वसे भद्दसालवेदीदो। णीलाचलदक्खिणदो पच्छिमदो चित्तकूडस्त्र ॥ २२३३ चौरानबै हजार एकसौ छप्पनको जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे घटाकर शेषके अर्धभागप्रमाण देवारण्योंका विस्तार है ॥ २२२६ ॥ (१००००० - ९४१५६) २ = २९२२ ।। छप्पन हजार योजनोंको जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे कम करके शेषको दोसे विभक्त करनेपर भद्रशालवनके विस्तारका प्रमाण जानना चाहिये ॥ २२२७ ।। (१००००० - ५६०००) २ = २२००० । नब्बै हजार योजनोंको जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे कम करदेने पर जो शेष रहे उतना मन्दरपर्वतका मूल में विस्तार समझना चाहिये ॥ २२२८ ॥ १००००० - ९०००० = १०००० । __ जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे चौवन हजार घटाकर शेषको आधा करनेपर पूर्वापरविदेहमेंसे प्रत्येकका प्रमाण निकलता है ॥ २२२९ ।। (१००००० -५४०००)२ = २३०००। विदेहके विस्तारमेंसे सीतानदीके विस्तारको घटा देनेपर शेषके अर्धभागप्रमाण क्षेत्र, वक्षारपर्वत और विभंगनदियोंकी लंबाइका प्रमाण होता है ॥ २२३० ॥ ___ उपर्युक्त क्षेत्रादिकमेंसे प्रत्येककी लंबाई सोलह हजार पांचसौ बानबै योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेसे दो भाग अधिक है ॥ २२३१ ॥ १६५९२३२ ।। एक एक विभंगनदीकी विचित्ररूप अट्ठाईस हजार परिवारनदियां शोभायमान होती हैं ॥ २२३२ ।। २८००० । भद्रशालवेदीके पूर्व, नीलपर्वतके दक्षिण और चित्रकूट के पश्चिममें सीतानदीके उत्तर १द ब दिव्वस्स. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy